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मूलाचार प्रदीप ]
[ तृतीय अधिकार ये इन्द्रिय रूपी घोड़े कुमार्ग में ले जानेवाले हैंपोषिता स्वेच्छयात्रतेक्षाश्वा उत्पपगामिनः । जन्मार्गे पासयंत्याशु नरान् मुक्तिपथात शुभात् ।।
अर्थ-अपनी इच्छानुसार पालन पोषण किये हुये ये इंद्रियरूपी घोड़े कुमार्गगामी हो जाते हैं और फिर मनुष्यों को मोक्षके शुभ मार्गसे हटा कर शीघ्र ही कुमार्ग में पटक देते हैं ॥६६४॥
भूत, भविष्यत, वर्तमान काल में इनके द्वारा ही जीव नरकों में जाते हैं - ये केचन गताः श्वधं यान्ति यास्याम्ति भूतले । केवलं ते जाना नूनमिन्द्रियाकुलीकृताः ॥
__ अर्थ-इस संसार में अब तक जितने जीव नरक गये हैं था अब जा रहे हैं या आगे जायेंगे वे मनुष्य केवल इंद्रियों से व्याकुल होकर हो गए हैं वा जायेंगे और तरह से नहीं ॥६६५॥
ग्यारह अंगके पाठी रुद्र भी इनके कारण ही नरक गएरुद्राधा मुनयो ग्राहो दशपूधंधरा विदः । खधूतवधिता हात्या चारित्रं नरकं ययुः ।।६६६।।
अर्थ-देखो ग्यारह अंग और दश पूर्व के जानकार रुन्त आदि कितने ही मुनि इस संसार में इंद्रियों से ठगे गए और अपने चारित्र को नष्ट कर नरक में जा पहुंचे। ।।६६६॥
पांचों इन्द्रियों में एक-एक के सेवन से भी निम्न प्राणियों ने अपने प्राण खो दिएस्पर्शनाक्षेण मातंगा मास्या जिह्वन्द्रियेण । प्राणेन भ्रमराश्चक्षुषा पतंगा मगास्तथा ॥ करणोंन्द्रियेण चकेन अयं यान्स्यत्र लोलुपा। । केवल विषयाशक्त्या किचित्तौख्यं श्रयन्ति न ।।
अर्थ-- देखो केवल स्पर्शन इन्द्रियके वश होकर हाथी अपने प्राण खो देता है, जिह्वा इन्द्रिय के वश होकर मछलियां प्राण खो देती हैं, घ्राण इन्द्रिय के वश होकर भ्रमर अपने प्राण खोता है, चक्षु इन्द्रिय के वश होकर पतंगा अपने प्राण खोते हैं और कर्प इन्द्रिय के वश होकर हिरण अपने प्राण सोते हैं। विषयों में प्रासक्त और इन्द्रिय लोलुपी ये जीव कुछ भी सुख न पाकर अपने प्राण खो देते हैं ।।६६७-६९८॥
जो पांचों ही इन्द्रियों का सेवन करते हैं वे नरकगामी क्यों नहीं होंगे ? एकैकालारिरणात्राहो प्रगष्टाः पशवो यदि । ततः पंचामलोला ये शवधनायाः कषं न ते ॥६६६
अर्थ-देखो एक-एक इंद्रिय रूपी शत्र के वश होने से ये पशु सब नष्ट हो