________________
मूलाचार प्रदीप ]
[द्वितीय अधिकार कल्याण करनेवाली है तीर्थकर चक्रवर्ती प्रादि की उत्तम विभूतियों को देनेवाली हैं समस्त पापों से रहित हैं सम्यग्दर्शनाविक रत्नोंको खानि है और संसाररूपी शत्रुओं को नाश करनेवाली है यही समझकर बुद्धिमान मुनियों को स्वर्ग मोक्ष की सिद्धि करने के लिये और करुणा आदि गुणोंको धारण करने के लिये अपने मन में अत्यन्त प्रयत्न कर के इन पांचों उत्तम समितियों का पालन करते रहना चाहिये ।।६००॥ पांचों समितियों के पालन कर्ता-(१) आचार्य (२) उपाध्याय एवं सर्व माधुओं के प्रति प्राचार्य
द्वारा अन्तिम नमस्कार-- ये पालयन्ति निपुणाः समितीः समस्ताः प्राचार्य पाठक सुसाधुमुनीन्द्र वर्गाः। भाह्मान्तरोपविधि रक्तमनोंग वाक्या स्तेषां गुणाय चरणाम् प्रणमामि नित्यम् ।.६०१॥ इति मूलाचार प्रबोपकाख्ये भट्टारक श्री सकलकीति विरिचते अष्टाविंशति
मूलगुण व्याल्याने पंचसमिति वर्णनो नाम हितोयोधिकारः ।
अर्थ-जो प्राचार्य उपाध्याय साधु वा मुनीन्द्र वर्ग अपने मन-वचन-कायसे माझ और पाभ्यन्तर परिग्रहों का त्याग कर इन समस्त समितियों का पालन करते हैं उन समस्त चतुर प्राचार्य उपाध्याय साधुनों के गुण प्राप्त करने के लिये उनके चरण कमलों को मैं सदा नमस्कार करता हूं ॥६०१॥ इसप्रकार आचार्य श्री सकलकोनि विरचित मूलाचार प्रदीपक नामके महाप्रत्यमें अट्ठाईस मूलगुणों
के ब्याख्यानमें पांचों समितियों का वर्णन करनेवाला यह दूसरा अधिकार समाप्त हुआ।