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मूलाचार प्रदीप ]
[द्वितीय अधिकार शिवमुख फलवल्ली मुक्तिकामा भजंतु समिति मपमला यरनात्प्रतिष्ठापनाल्याम् ॥५९७।।
अर्थ-यह प्रतिष्ठापन समिति भगवान जिनेन्द्रदेव के मुख से प्रगट हुई है, धर्मरूपी रत्नोंको खानि है, समस्त गणधर देव और श्रेष्ठ मुनि इसको सेवा करते हैं, इसको पालो है, यह स्प लिये सीढ़ियों की पंक्ति है, मोक्ष सुखरूपी फलों को बेल है और समस्त दोषोंसे रहित है ऐसी यह प्रतिष्ठापना समिति मोक्षको इच्छा करनेवाले पुरुषों को प्रयत्न पूर्वक पालन करनी चाहिये ।।५६७॥
पांचों समितियों का महाफलएता:पंच शुभाकराः सुसमिती:स्वोक्षसौल्यप्रदाः अंतातीत गुणाकरा भुवि महा सर्वत्रतांवाः पराः। ये यत्नेन सुपालयंति निपुणास्तेषां च पंचैवस्युः संपूर्णानि महाव्रतानि सुधियां स्व, किशर्मादयः ।।
अर्थ-ये ऊपर कही हुई पांचों समितियां कल्याण करनेवाली हैं, स्वर्ग मोक्ष के सुख देनेवाली हैं अनंत गुणों को खानि हैं और समस्त महावतों की जनती हैं । जो बुद्धिमान मुनि प्रयत्न पूर्वक इन उत्कृष्ट समितियों का पालन करते हैं उन चतुर पुरुषों के पांचों महावत पूर्णता को प्राप्त होते हैं तथा स्वर्ग मोक्षके पूर्ण सुख और कल्याण प्राप्त होते हैं ।।५६८॥
___ पांचों समितियों के पालन नहीं करने का फलप्रासां ये शिथिलाःप्रपालन विधी निचप्रमावं सदा कुर्वत्यत्र दयादयो वसगुणास्तेषां प्रणश्यति भोः। ताशाच महाघमात्महतक तरपाकतो दुर्गतो घोरं स्यादसुखं यमुत्र परमं चांतातिगासंसृतिः ॥
अर्थ-जो मुनि इन पांचों समितियों के पालन करने में शिथिलता करते हैं तथा निदनीय प्रमाद करते हैं उनके दया आदि व्रत और गुण सब नष्ट हो जाते हैं । व्रतोंके नष्ट होने से प्रास्मा का घात करनेवाला महापाप उत्पन्न होता है, उस महापाप के उबय से परलोक में दुर्गतियां प्राप्त होती हैं उन दुर्गतियों में महा घोर दुःख उत्पन्न होते हैं और अनंत संसारमें परिभ्रमण करना पड़ता है ।।५९६।। करुणा आदि गुणों को धारण करने के लिये पांचों समितियों का पालन अत्यन्त प्रावश्यक
मत्येतोह घुषाः प्रमलमनसा स्वर्मोक्षसंसिद्धये, कारण्याविगुणाय मुक्तिजननीः कृत्स्नवताम्वाः शुभाः । तीपेशादिविसूतिदाश्च समिती पंचव पापातिगाः,
ग्रत्नावि खनीः भवारिमथनीः संपालयंतूत्तमाः॥६००। अर्थ-ये पांचों समितियां मोक्ष को जननी हैं, समस्त व्रतों की माता है,