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मूलाचार प्रदीप ]
[द्वितीय अधिकार (२२) मूर्खपतन (२३) उपवेशन (२४) दंष्ट अन्तरायमूर्छाविना पतेद्योगी, कुर्याध पवेशनम् । श्वाधिभि यदि यष्टः स्या, न्युमिः स्वपापकर्मणा ।।
अर्थ-यदि आहार करते हुए भुमि अच्छी श्रादि के कारण से गिर जाय तो उनके (२२) 'मू पतन' नामक अन्तराय होता है। यदि आहार करते हुये मुनि बैठ जाय तो उनके (२३) 'उपवेशन' नामका अन्तराय होता है । यदि पाप कर्मके उदयसे कुत्ता प्रादि कोई जानवर काट ले तो उन मुनि के 'दंष्ट' नामक २४वा अन्तराय होता है।॥५५०।।
(२.५) भूमिस्पर्शन तथा (२६) निष्ठीधन नामक अन्तराय--- सिद्धभक्ती कृतायां, स्वहस्तेनासौ घरां स्पृशेत् । निष्ठीमनं विषत्ते वा, क्षिपेत् क्लेमादिकं यमी ।।
अर्थ-यदि मुनि सिद्धभक्ति करने के बाद अपने हाथ से पृथ्वी का स्पर्श कर लें तो उनके 'भूमि स्पर्शन' नामक २५वां अन्तराय होता है यदि वे मुनि सिद्धभक्ति के बाद धक दें अथवा कफ भूक दें तो उनके 'निष्ठीवन' नामका २६वां अन्तराय होता है ॥५५॥
(२७) उदर कृमि निर्गमन तथा (२८) प्रदत्त ग्रहण अन्तरायनिर्गच्छति स्वयं चास्योदरादेव कृमिवहिः । किंचिल्लोभेन गृह्णाति सोदतं पर वस्तु च ॥५५२।।
अर्थ- यदि मनि के उदर से अपने आप कोई कोड़ा बाहर निकल आये तो 'उदर कृमि निर्गमन' नामका २७वां अन्तराय होता है । यदि वे मुनि किसी लोभ के कारण बिना दिये हुये किसी पर पदार्थ को ग्रहण करलें तो उनके 'प्रसग्रहण' नामका २८वां अन्तराय होता है ।।५५२।। (२९) शस्त्र प्रहार व (३०) ग्रामवाह तथा (३१) पादेन ग्रहण नामक अन्त गाय का स्वरूप--
खड्गादिभिः प्रहार: स्यात्स्वात्मनो वा परागिनाम् ।
जायते गृह दाह्मच किंचिद् गृह्णाति सोंत्रिरणा ||५५३।। अर्थ-यदि कोई मनुष्य उन मुनि पर तलवार प्रावि शस्त्रका प्रहार करे वा उनके सामने अन्य किसी मनुष्य पर प्रहार करे तो उन मुनि के शस्त्र प्रहार' नामका अन्तराय होता हैं । यदि पाहार के समय उसी गांव के किसी घर में अग्नि लग जाय तो 'ग्रामवाह' नामका अन्तराय होता है । यदि वे मुनि अपने पैरसे कोई वस्तु उठाकर प्रथम करलें तो उनके पादेन प्रहरण' नामका अन्तराम होता है ॥५५३।।