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मुलाचार प्रदीप ]
[ द्वितीय अधिकार अर्थ-कितु अपने गुरु के पास आकर भक्ति पूर्वक उनको नमस्कार करना चाहिये और कमों को नाश करने के लिये अपनी शक्ति के अनुसार चारों प्रकार का प्रत्याख्यान ग्रहण करना चाहिये ॥५५॥
निदा पीर गर्दा पूर्वक गोनारी प्रतिक्रमण की अावश्यकना-- ततोतोचार शुद्धयर्थ निया गाँदिपूर्वकम् । मुनिः कुर्याद्धि गोचारो प्रतिक्रमणमंजसा ॥५६०॥
अर्थ-तदनंतर उन मुनियोंको उस चर्या में लगे हुए अतिचारों को शुद्ध करने के लिये निंदा और गर्दा पूर्वक गोचारी प्रतिक्रमण (पाहार में लगे हुए दोषोंको क्षमापणा करना चाहिये ॥५६॥
शर्म नष्ट करने के लिए निरन्तर स्वाध्याय प्रावश्यकपुनः कर्मक्षयायासौ शास्त्राभ्यासं निरन्तरम् । ध्यानं या परम सारं प्रशस्तं परमेछिनाम् ॥५६१।। . अर्थ- इसके बाद उन मुनियों को अपने कर्म नष्ट करने के लिये निरन्तर . शास्त्रोंका अभ्यास करना चाहिये और परमेष्ठियों का सारभूत सर्वोत्कृष्ट प्रशस्त ध्यान धारण करना चाहिये ॥५६१।।
समस्त संकल्प विकल्पों का त्यागकरोति तत्त्वचितां च भावना स्वपराममः । निर्विकल्पं मनः कृत्वा संधेग धर्मवासितम् ।।५६२॥
अर्थ-उन मनियों को अपने मनके समस्त संकल्प विकल्पों का त्याग कर देना चाहिये तथा मन को संवेग और धर्म में स्थिर कर तत्त्वोंका चितवन तथा अपने प्रात्मा की भावनाओं का और अन्य आत्माओं की भावना का चितवन करते रहना चाहिये ।।५६२॥
दिन में सोने का त्याग तथा विकथानों का परित्याग-- न विवाशयनं कुर्याद धिकथा नायकारिणीम् । लाभालाभाधि पृष्टोपि यदेज्जातु न संयमी ।।
अर्थ-मनियों को न तो दिन में कभी सोना चाहिये, न पाप उत्पन्न करने बाली विकथायें कहनी चाहिये तथा पूछने पर भी किसी के लाभ वा अलाभ को नहीं बतलाना चाहिये ।।५६३।।
___धर्मध्यान के बिना एक घड़ी भी व्यर्थ नहीं व्यतीत करना चाहिएबहनोभतेन कि साध्यं धर्मध्यानं बिना यतिः । एकां कालकला आतु गमनाति दुर्लभाम् ।।