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अथ द्वितीयोऽधिकारः
मंगलाचरण पूर्वक समिति वर्णनश्रीमवन्यः परमेष्ठिभ्यो मोक्षगामिभ्य एव च । महासमिति युक्तेभ्यो नमः समितिसिद्धये ॥२६५11
अर्थ-जो परमेष्ठी अंतरंग बहिरंग लक्ष्मी से सुशोभित हैं जो मोक्षगामी हैं और महासमितियों से सुशोभित हैं उनको मैं समितियों की सिद्धि के लिये नमस्कार करता हूं ॥२६॥
५ समितियों के नामर्याभाषषणायाम, निक्षेपण समाह्वया । प्रतिष्ठापन संज्ञाः समितयः पंच चेसि ।।२६६।।
अर्थ-(१) ईयर्यासमिति (२) भाषासमिति (३) एषणासमिति (४) प्राधान निक्षेपण समिति और प्रतिष्ठापन समिति ये पांच समितियां कहलाती हैं ।।२६६॥
ईर्यासमिति का लक्षणविधसे प्रासुके मार्गे, गोखरोष्ट्ररथाविभिः । प्राणिस्तातिगेयुद्ध जनाचं रुपमविते ॥२६॥ कार्यार्थ गमनं यच्च, क्रियते संयतः शामः । यस्माद् घुगान्तरं प्रेक्षिभिः सेसिमितिमता ।।२६८।।
अर्थ-जो यत्नपूर्वक ४ हाथ भूमिको देखकर, गमन करने वाले मुनि अपने किसी काम के लिये, गाय, गधा, ऊंट, रथ आदि से मवित या मनुष्यों से उपदित शुद्ध प्रासुक मार्ग में, दिन में ही धीरे धीरे गमन करते हैं उसको 'ईर्यासमिति' कहते हैं ॥२६७-२६८।।
ईर्यासमिति का विशेष विवरणकार्यावृते न गन्तब्य, जातुग्रामगृहाविषु । वृथा पर्यटनं भूमी, न कार्य था शुभप्रदम् ॥२६९।।
अर्थ-मुनियों को बिना काम के किसी गांव या घर में, कभी नहीं जाना चाहिये; और न पृथ्वी पर व्यर्थ धूमना शाहिये क्योंकि इससे अशुभ वा पाप ही उत्पन्न होता है ।।२६६॥
कब गमन नहीं करना चाहियेमस्तं गते दिवानाये, इथवा भानुदयावृते । विधेयं गमनं जातु, न सत्सुकार्यराशिषु ॥२७॥