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मूलाचार प्रदीप ]
दोष माना है || ३६६ ॥
( ६१ )
[द्वितीय अधिकार
(१४) मालारोहण दोष—
निःश्रेण्यादिकमा, द्वितीयगृहभूमितः । ग्रानीतं खलु यद्दे में, स मालारोहयो मलः ॥ ३६७।। अर्थ --जो प्रत्र, पान नर्सनी पर चढ़कर या उतर कर ऊंची या मीची दूसरे की भूमिपर से लाकर, मुनियों को दिया जाता है उसमें 'मालारोहण' दोष लगता है । इसमें दाता का अपाय होता है ।।३६७॥
(१५) आच्छे दोष -
संगतानागमान् दृष्ट्वा, राजचौर्यादिशाख्यात् । जनमहीयते दशनमाच्छेद्य दोष एव सः ॥ ३६६ ॥
अर्थ – मुनियों के आगमन को देखकर राजा या चोरों के भय से जो लोगों के द्वारा मुनियों को दान दिया जाता है उसको 'आच्छे' दोष कहते हैं (यदि दान न दोगे तो हम तुम्हारा धन लूट लेंगे या तुम्हें निकाल देंगे । इसप्रकार के डर से डर कर दान देना 'प्राच्छेद्य' दोष है ) ||३८||
(१६) अनीशार्थं नामक दोष
सारक्षेणेश्वरेण वानोश्वरेणषा, नीश्वरेण च दीयते । व्यक्ताव्यक्तं में दानं यद्दोषोsनोशार्थ एव सः ॥ अर्थ- - व्यक्त और अव्यक्त के भेद से ईश्वर के अर्थात् स्वामी वा प्रभु के २ भेद हैं तथा ( १ ) व्यक्त और (२) अव्यक्त ईश्वर और ( १ ) व्यक्त या अव्यक्त 'बनीश्वर' यदि किसी के निषेध करने पर भी दान दे तो उसके 'अनीशार्थ' नामका दोष लगता है ||३६||
ऐसा क्यों इसका कारण
staritra friधयति यद्भ ुवि । इत्यादि सोखिलो नेयो, दोषोऽनोशार्थं संज्ञकः ॥ अर्थ --- इसमें एक दान देता है और दूसरा निषेध करता है; इसप्रकार के दान में 'अनीशार्थ' नामका दोष लगता है ॥ ४०० ॥
सभी १६ उद्गम दोषों के त्याग की आवश्यकता
षोडशेव परित्याज्याः सद्भिः क्लेशापकारिणः । ( ग्रांगे की पंक्ति नहीं है ) ||४०१ ॥ |
अर्थ - इसप्रकार ये 'उद्गम' नाम के १६ दोष हैं। ये दाता और पात्र दोनों
के आश्रित हैं और क्लेश तथा पाप उत्पन्न करनेवाले हैं इसलिये सज्जनों को इन