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मुनाचार प्रदीप |
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सब कुल ४६ प हैं
पिजीकृता ग्रमी सर्वे षट् चत्वारिशदेव हि । यत्नेन परिहर्तव्या, दोषा दोषकरा बुत्रैः ।।४६४ ॥ अर्थ- ये सब दोष मिलकर ४६ होते हैं तथा सब अन्य अनेक दोष उत्पन्न करने वाले हैं; इसलिये बुद्धिमानों को यत्नपूर्वक इनका त्याग करना चाहिये ||४६४|| ६ कारण से भोजन का त्याग व ग्रहशा
[ द्वितीय अधिकार
कारणषड्भिराहारं गृह्णन् धर्मं चरेद्यतिः । श्यजन् षट्कारणेश्वाल, तरां संयममाचरेत् ||४६५ ॥ अर्थ-मुनियों को उचित है कि ये ६ कारणों से आहार को ग्रहण करते हुये धर्म का पालन करें तथा ६ कारणों से आहार को छोड़कर संयम का पालन करें ।।४६५ ॥
आहार ग्रहण करने के ६ कारण-
हदनोयोपशान्यर्थ, व्यावृत्त्याय योगिनाम् । षडावश्यक पूर्णाय सर्वसंयमसिद्धये ॥१६६॥ प्राणायें व क्षमामुध्या, दशसद्धर्महेतवे । एतैः षट्कारणं योगी गृह्णीयादशनं भुवि ।।४६७ |
अर्थ - (१) क्षुधा वेदनीय को शांत करने के लिये (२) मुनियों को क्यावृत्य करने के लिये (३) छहों श्रावश्यकों को पूर्ण रीतिसे पालन करने के लिये ( ४ ) स तरह के संयमों का पालन करने के लिये ( ५ ) प्राणों की रक्षा करने के लिये (६) उत्तम क्षमा आदि १० धर्मों को पालन करने के लिये मुनियों को आहार ग्रहण करना चाहिये । मुनियों को आहार ग्रहण करने के ये ६ कारण हैं ।।४६६-४६७।।
आहार ग्रहण करने का मुख्य लक्ष्य -
तीव्र दनाक्रान्तो असं पालयितुं क्षमः । नाहं मत्येति बत्ताय भुजे भक्त
।। ४६८ ।।
अर्थ - तीव्र क्षुधा की वेदना से पीड़ित हुआ में चारित्र का पालन नहीं कर सकता अतएव चारित्र पालन करने के लिये मैं आहार लेता हूं मैं सुख के लिये आहार नहीं लेता ||४६८ ||
यावृत्य करने में प्रधान कारण
हारे बिना ना, कन्तु शक्नोमि योगिनाम् । यात्यमिहातोन, भुजे तसिद्धये दचित् ॥ अर्थ- मैं बिना आहार के सुनियों की वैयावृत्य नहीं कर सकता; अतएव करने के लिये ही मैं आहार लेता हूं ||४६६ ॥