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मूलाचार प्रदीप
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[द्वितीय अधिकार अर्थ-यदि वहां पर किसी ने प्रतिग्रहण न किया हो तो आत्मा के स्वरूप को जानने वाले उन मुनियों को वहां से शीघ्र ही निकल जाना चाहिये । यदि किसीने विधि पूर्वक प्रतिग्रहण कर लिया हो तो उनको अपने योग्य पृथ्वी पर खड़े हो जाना चाहिये ॥५११॥
पृथ्वी निर्जीव है इसे सर्वप्रथम निरीक्षण करना चाहियेस्वाघ्रिभोजनदातृणां स्थित्य निरीक्ष्य सद्धराम् । त्रसजीवादि संस्मक्तां, कार्यस्थित्यर्थमात्मवान् ।।
____ अर्थ-तदनंतर आत्मा के स्वरूप को जानने वाले उन मुनियों को आहार करने के लिये उस पृथ्वीको देखना चाहिये कि वहांपर अपने खड़े होनेको और दाताओं के खड़े होनेको स्थान है या नहीं और वह पृथ्वी त्रस जीवोंसे रहित है या नहीं ।५१२।
परों में ४ अंगुख का अन्तर--- पादपोरंतरं कृत्वा, चतुरंगुलसमितम् । निधिछद्रं पाणिपा विधाय, तिष्ठत्सुसंयतः ।।५१३॥
अर्थ-...रि उन गिलों को अपने जोनों में ४ अंगुल का अन्तर रखकर खड़ा होना चाहिये और अपने दोनों करपात्रोंको छिद्र रहित बना लेना चाहिये ।५१३१
सिद्धभक्ति पूर्वक पाहार ग्रहणसिद्धभक्तिं ततः कुर्यान, निष्पापं प्रासुकाशनम् । विधिना दीयमानं स, प्रतीच्छेत् विहानये ।।
अर्थ-तदनंतर उन मुनियों को सिद्ध भक्ति करनी चाहिए और फिर क्षधा वेदना को दूर करने के लिए विधि पूर्वक दिए हुए पाप रहित प्रासुक आहार को ग्रहण करना चाहिए ।।५१४॥
खड़े होकर पंच प्रकार की वृत्ति सहित भोजन लेना चाहियेपथागतं तदन्नस, सरस वा रसातिमम् । स्वादं त्यक्त्वा भजेट् गोचारादिपचविधं स्थितः ।।
अर्थ-दाताके द्वारा दिया हुआ जो अन्न सरस हो या नीरस हो उन मुनियों को अपना स्वाद छोड़कर ग्रहण कर लेना चाहिए । उन मुनियों को खड़े होकर आहार लेना चाहिए और गोचर आदि ५ प्रकार की वृत्ति पूर्वक प्राहार ग्रहण करना चाहिए ।।५१५॥
५ प्रकार की वृत्तियों के नामगोचारः प्रथमो भेदो, परोक्षमारणातयः । तृतीय उवरान्निप्रशमनास्थाचातुर्थकः ।।५१६।।