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भूलाचार प्रदीप
( ६४ )
[ द्वितीय अधिकार
अर्थ-- क्रोध दिखला कर जो भिक्षा उत्पन्न की जाती है; उसमें (७) 'क्रोध' नामका दोष उत्पन्न होता है । अपना अभिमान दिखला कर जो भिक्षा उत्पन्न की जाती है उसमें (८) मान नामका दोष लगता है ।।४१५ ।।
( ९ ) माया नामक दोष
माया कौटिल्यभावं च कृत्वाहाराविकं भुवि । उत्पाद्य भुज्यते यैस्तेषां मायादोष एव हि ॥ अर्थ - मायाचारी या कुटिल परिणामों को धारण कर जो प्रहार उत्पन्न कर ग्रहण किया जाता है उसमें ( ६ ) माया नामका दोष लगता है ।।४१६॥
(१०) लोभ दोष
लोभं प्रविश्य भिक्षां यः, उत्पादयति सूतले । स्वात्मनो लोभिनस्तस्य लोभ दोषोऽशुभप्रदः ॥ अर्थ- जो मुनि अपना कोई लोभ दिखलाकर भिक्षा उत्पन्न कर ग्रहण करता है उस लोभी मुनि के पाप उत्पन्न करनेवाला 'लोभ' दोष लगता है ।। ४१७ ।। प्रत्येक के उदाहरण (७) क्रोध दोष
पत्तने हस्तिकल्पास्ये कश्चित्साधुः कुमार्गगः । भिक्षामुत्पादयामास क्रोधेन गृहनायकात् ॥ अर्थ- हस्तिकल्प नाम के नगर में किसी कुमार्गगामी साधु ने किसी गृहस्थ से अपना 'को' दिखला कर भिक्षा उत्पन्न की थी ||४१८ ॥
(८) अभिमान दोष का उदाहरण
पुरे भिक्षामुत्पादितवान् मुनिः । मानेन स्वस्य दुर्मागं गतो मानी गृहस्थतः ॥ ४१६॥ अर्थ - वेष्णातट नामके नगर में कुमार्गमें चलने वाले किसी श्रभिमानी मुनि ने अपना अभिमान दिखलाकर भिक्षा उत्पन्न की थी ।।४१६ ॥
(६) माया दोष का उदाहरण
वाराणस्य तथा कश्चित् सलोभः संयसोबुधः । मायया स्वस्थ बाहार, माविश्चक्रति निवितं 11 अर्थ- वाराणसी नगरी में किसी बुद्धिमान् लोभी सुनि ने अपनी मायाचारी प्रगट कर निंदनीय श्राहार उत्पन्न किया था ॥४२० ॥
(१०) लोभ दोष का उदाहरण----
तथान्यः संयतः कश्चिद्राशियानाभिधे पुरे । लोभं प्रवश्यं भिक्षां, पुंसामुत्पादितवान् क्वचित् ।।