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सूखाचार प्रदीप ]
द्वितीय अधिकार * अनार की अनुशाया के दप्रथमा मंत्रिणी भाषा, झापना याचनाभिषा। संपृच्छना तथा प्रज्ञा पना भाषा च पंचमी ।। प्रत्याख्यानाह्वयेच्छा, मुलोमाख्या सप्तमी ततः। संशयादि वचन्यंत, भाषाष्टमी ततोऽपरा ।। अनमराभिषाभाषा, सारासस्यमषालया। असत्यासत्यभाषाया, नवमेदा भवन्स्यमी ।।३०६।।
मर्थ-(१) आमंत्रणी (२) प्राज्ञापना (३) याचना (४) संपृच्छना (५) प्रज्ञापना (६) प्रत्याख्याना (७) इच्छानुलोमा (4) संशयवचनी (E) अनारा ये
बनुभय भाषा के मेव है ॥३०४-३०५.३०६॥ आमंत्र्यते यया लोकोऽभिमुखी क्रियते प्रति । म्यापारान्तरमेवान्य भाषासामन्त्रणी स्मृता ।
अर्थ-किसी को अपने सामने करने के लिये, बुलाने के लिये अथवा व्यापारान्तर करने के लिये, दूसरों के द्वारा, जो भाषा बोली जाती है उसको (१) आमंत्रणी भाषा कहते हैं ॥३०७॥ प्रामाप्यते यथा लोके, प्राशा तेऽहं ददामि भोः । इत्यावि वचनं यत्सा, झापना मीनिरूपिता ॥
___ अर्थ- "मैं तुमको यह प्राज्ञा देता हूं" इसप्रकार जो माझा रूप बचन कहना है उसको (२) 'प्राजापनी' भाषा कहते हैं ।।३०।। याधमा क्रियते लोके, या सा याचनात्यगोः । यथाहं मापयामि त्वां किंचिद्वस्तु शुभाशुभम् ।।
अर्थ-मैं तुमसे यह शुभ या अशुभ वस्तु मांगता हूं, इसप्रकार मांगने के लिए जो भाषा बोली जाती है उसको 'याचना नामकी' भाषा कहते हैं ।।३०६।। संपृच्छपते यवान्पः सा, भाषा संपृषछनाहया । यथा पृच्छाम्यहस्था च, किचिरका हिताहितं ।।
अर्थ--मैं तुमसे कुछ 'हित मा अहित की बाल पूछना चाहता हूँ इसप्रकार जो दूसरों के द्वारा पूछने के लिये जो भाषा बोली जाती है उसको 'संपृच्छना' भाषा कहते हैं ॥३.१०॥ श्या प्रज्ञाप्यते लोकों, भाषा प्रशापनात ला । यया प्रथापयामि त्वा, महं किचिन्मनोगतम् ।।
अर्थ-मैं तुमको अपने मन को कुछ बात बताना चाहता हूं इसप्रकार लोगों को कुछ सूचना देने की बात कही जाती है उसको 'प्रनापना' भाषा कहते हैं ॥३११॥ मप्रत्मात्यायसे भावमा, सा भावात्र कम्यते । प्रत्याल्याना यथा, प्रत्याख्यानं मेदोबसामिरम् ।।
अर्थ—'मुझे यह प्रत्याख्यान दीजिये' इस प्रकार भाषा के द्वारा जो प्रत्या