Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
खरी०
७७
MEAGUGGESARSOS
अपेक्षास ही सम्यग्ज्ञान भजनीय है यह-वाक्य कहा गया है। श्रुतज्ञान और केवलज्ञानको ग्रहण करने वाला शब्दनय श्रुतज्ञान तथा केवलज्ञानको ही विषय करता है इसलिये उन्हींका यहां पर ग्रहण है। माता | सारांश यह है कि यद्यपि चौथे गुणस्थानमें जिससमय सम्यग्दर्शन प्रगट होता है उसीसमय सम्यग्ज्ञानं |६|| || भी प्रगट हो जाता है। परंतु द्वादशांग चतुर्दशपूर्वलक्षण रूप नियमसे नहीं होता इसलिये वह प्राप्तव्य है। है अथवा सम्यग्दृष्टिकेलिये वांच्छनीय है । उसीप्रकार अवधि मनःपर्यय ज्ञान भी उचरोचर वांछनीय हैं। इसप्रकार विशेष ज्ञानोंकी भजनीयता वहांतक चली जाती है जहांतक कि केवलज्ञान नहीं होता।
जिसप्रकार सम्यग्दर्शनके लाभ होने पर सम्यग्ज्ञान भजनीय है उसीप्रकार सम्यग्ज्ञान होने पर सम्य॥६/चारित्र भजनीय है । जिससमय सम्यग्दर्शन होता है उसीसमय स्वरूपाचरण चारित्र प्रगट हो जाता है |
परंतु क्रियात्मक एवं भावात्मक देशचारित्र, सकल चारित्र, और यथाख्यात चारित्र क्रमसे प्राप्तव्य है। । अर्थात् अविरत सम्यग्दृष्टिकेलिये देशचारित्र प्राप्तव्य है देशचारित्रप्राप्त पुरुषकेलिये सकल चारित्र प्राप्तव्य है सकलचारित्र छठे.गुणस्थामसे दशवें तक क्रमसे विकाशशील है, इसलिये जहां जितना सक-है। लचारित्र जिप्स जीवको प्राप्त हो चुका है उसकोलिये उससे आगेका सकलचारित्र प्राप्तव्य है, सकलचारित्रप्राप्त पुरुषकेलिये यथाख्यात चारित्र प्राप्तव्य है।
. यहां पर यह शंका उठाई जासक्ती है कि सम्यग्ज्ञानके होने पर सम्पचारित्र क्यों भजनीय बंत| लाया गया है क्योंकि सम्यग्ज्ञान तो केवलज्ञानकी अपेक्षा भी कहा गया है इसलिये वह तो तेरहवें गुण-||
स्थानमें प्राप्त होता है परंतु सम्पंक्चारित्र तो दशवेंकी समाप्ति एवं बारहवेंके प्रारंभमें ही हो जाता है | | ऐसी अवस्थामें सम्यक्चारित्रद्वारा सम्यग्ज्ञान ही भजनीय होना चाहिये। वैसी अवस्थामें सूत्रपाठक्रम
CRETARGEOGRAM
iancinmains
PEOGRA-NCREASEOCERess
m
BARSHANGEE
ma
-