Book Title: Atmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Atmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
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अनमः॥ एक साहिब अंगरेजने विलायत को लिखाया कि एकक्रम वेदसंहितासमाष्पका पुरु क साकजैन मुनि त्मारामजीकों सरकारने नेटदा खुलनेजना चाहिये सो पुस्तक तोलमें 24 सेरका
सो सरकारने गवरनर जनरलकी ओट सा दिबकी मारफत मुकको जोधपुर में मिला है यह वात सत्य है
२ नवीन साधुयों को बड़ी दीक्षा दी नींदै सो किसशा खानुसारे गुजरात मेतो भगवतीना योगव हरा होने सोदीक्षा देवे इति ॥
उत्तर मैं पामरजीवनगवंत की संज्ञाचा रा धनही सक्ता रूं दिज्ञातो मैने समावारीकीरीतीसें दीनी है परंतु भगवतीका योग तो मैनेन दीव ह्या यह मेरे में न्यूनता है और विना योगवा मैनग वतीप्रमुख शास्त्र व्यारमान में वाव तारूं शिष्यों को वाचनादेतारुं यद इस रीन्पून तादै २ और योग तोवद्या परंशास्त्रन ही पढा देशतीपूर्वक तिसकों मे गतिमानताराशं यदती सरीन्पुनता है ३ और किसिनगर की समाचारीमै मैनेन दीदे रमादै कि गणिणिको गणिप्रददेवे पर आचार्यगलिप ददेवे सलिखसर्व श्वाचार्यो की समाचारीयो में है १२ मै तो पूवेक्ति रीनी वाले को गलिमान तार दाॐ य दवन्यूनता है।
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