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श्री. ईश्वरलाल जैन
उपकार का परिणाम है । यद्यपि इस संस्था की स्थापना कुछ वर्ष पूर्व हुई और उसके लिये राणकपुरी तीर्थ के रास्ते में एक भव्य मकान भी तैयार करा कर समाज के रत्न श्रीयुत गुलाबचन्दजी ढड्ढा के करकमलों से वहां का प्रवेश भी हो गया था, परन्तु वहां के संघ की पारस्परिक फूट के परिणाम स्वरूप कार्य कम रहा, सन् १९३२ में आचार्य श्री के शुभ पदार्पण से क्लहक्लेश मिटा और १७ हज़ार का चन्दा जो कि विद्यालय के लिये देना किया था, वसूल किया जाने लगा, और विजयादशमी के दिन महोत्सव के साथ कार्य प्रारम्भ कर दिया गया, जो अब सुचारू रूपसे चल रहा है । श्री आत्मानन्द जैन कन्या पाठशाला अम्बाला शहर-
सन् १९१३ में बालिकाओं की शिक्षा के लिये मुनि श्री लब्धिविजयजी (वर्तमान आचार्य श्री विजयलब्धिसूरि ) महाराज के चतुर्मास में यह कन्या पाठशाला स्थापित की गई, जो बराबर २२ वर्ष से अच्छी तरह चल रही है, वर्तमान समय में १६३ कन्यायें शिक्षा प्राप्त कर रही हैं, चार अध्यापिकाओं की देखरेख में कार्य अच्छा हो रहा है। जहां पर अन्य शिक्षाओं के साथ जैन धर्म की शिक्षा भी अवश्य दी जाती है। यदि कन्याओं के धर्म के प्रति विचार दृढ़ होंगे तो भविष्य बड़ा उज्ज्वल होगा, क्योंकि यही कन्या भावी की मातायें हैं, कन्याओं को ज्ञान दान करने का जो श्रेय प्राप्त किया है वह स्तुत्य है ।
श्री आत्मानन्द जैन कन्याशाला गुजरांवाला-
पञ्जाब में गुजरांवाला ही ऐसा नगर है जहां जैनियों की संख्या अधिक है, स्थानीय समाज ने अपनी कन्याओं के लिये शिक्षा की आवश्यक्ता महसूस करते हुए लगभग दस वर्ष पूर्व इस शाला की स्थापना की। जिस में हिन्दी आदि की शिक्षा के साथ धार्मिक शिक्षा भी भलीभांति दी जाती है । वर्तमान समय में १०० के लगभग कन्यायें तीन अध्यापिकाओं की देखरेख में शिक्षा का लाभ ले रही हैं ।
श्री आत्मवल्लभ केलवणी फण्ड पालनपुर (गुजरात ) --
यह संस्था गुजरात देश में शिक्षाप्रचार के लिये कई वर्षों से कार्य कर रही है, शिक्षा प्रचार के लिये ही फण्ड एकत्रित किया गया है। पढ़नेवाले योग्य विद्यार्थीयों को सहायता देना और शिक्षा के लिये उत्साहित करना एवं जैनसमाज से अज्ञान अन्धकार मिटा कर विद्या का प्रकाश करना इस संस्था का उद्देश्य है ।
शताब्दि ग्रंथ ]
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