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ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद जैन
भाव-अहिंसा - धर्मधारी सर्व प्राणिमात्र का रक्षक होता ही है। भाव-अहिंसा द्रव्यअहिंसा का साधन हैं। इसी के विपरीत भाव - -हिंसा द्रव्य-हिंसा का साधन है। किसी भी प्राणी का घात व किसी भी प्राणी को कष्ट वही सम्पादन करेगा जिस के भावों में द्वेष का विकार होगा । अतएव जैनधर्म के अनुयायी जैन साधु भाव -अहिंसा और द्रव्य-अहिंसा के पूर्ण पालन का साधन करते हैं - प्राणीमात्र की रक्षा करते हैं - कष्ट पाने पर भी कष्टदाता पर द्वेषभाव नहीं लाते हैं - प्राणघातक पर भी अदयाभाव न लाकर करुणा व प्रेम का भाव जागृत रखते हैं । जैन गृहस्थ एकदेश मोक्षमार्गी हो सक्ता है अतएव जैसे वह अन्यायपूर्वक रागद्वेष नही करता है वैसे वह अन्यायपूर्वक द्रव्य - हिंसा नहीं करता है |
लोकव्यवहार चलाने को उसे
न्यायपूर्वक असि (शस्त्र) कर्म, मसिकर्म, शिल्पकर्म, कृषिकर्म, वाणिज्यकर्म तथा विद्याकर्म के द्वारा आजीविका साधन करना पड़ती है, देश की रक्षा करनी पड़ती है, अन्यायी व दुष्ट को दंड देना पड़ता है, घोर अन्यायी व दुष्ट शत्रु को शस्त्रप्रहारद्वारा भी हटाकर स्वपर की व देश की रक्षा करनी पड़ती है ।
इस जैनधर्म को हरएक मनसहित प्राणी पाल सक्ता है । भारतीय या विदेशी, आर्य अनार्य हरएक मानव अपनी २ योग्यतानुसार जैनधर्म पर चलकर स्वपर उपकार कर सक्ता है, निर्वाणमार्ग पर यथाशक्ति चलकर स्वात्मानन्द प्राप्त कर सक्ता है व विश्व आत्मप्रेमद्वारा जगत् के प्राणियों का उपकार कर सक्ता है | अन्याय के कुपथ पर चलने से ही प्राणियों को कष्ट मिलता है, तब राज्यों में विवाद खड़ा हो जाता है- युद्ध छिड़ जाते हैं । जैन धर्म की शिक्षा ग्रहण कर यदि मानवसमाज न्याय पथ पर चले तो युद्धों की भयंकरता कभी न हो । एक कौम दूसरी कौम के साथ न्याय से वर्ते तब दोनों ही कौमें सुखशांतिपूर्वक जी सक्ती हैं ।
यह विश्वहितकारी जैनधर्म आज जन्म के जैनियों में ही सीमित करदिया गया है, मानकषाय ने इस धर्म के प्रवाह को रोक दिया है । हम वृथा अभिमानवश मानवों को जैनधर्म की दीक्षा देकर, उनको मांस-मदिरात्यागी बनाकर, उनको जिनेन्द्रदेव, जिनगुरु व जिनधर्म का भक्त बनाकर भी उनको अपने बराबर नही बनाते हैं, सामाजिक व्यवहार में उनका तिरस्कार करते हैं— उनके साथ यथायोग्य खानपान व्यवहार नहीं करते हैं और न विवाह सम्बन्ध खोलते हैं - यह मिथ्यात्व भाव जैनधर्म की प्रभावना में बाधक है। प्राचीनकाल के पौराणिक उदाहरणों को भी हम दृष्टि से उल्लंघ देते हैं ।
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