________________
पंजाब के जैन भंडारों का महत्त्व
मिलने की अधिक संभावना नहीं, तथापि चालीस...पचास तो ऐसे ग्रन्थ अवश्य निकल आवेंगे। देखिये
(क) गुणशेखर शिष्य नयरङ्गकृत विधिकन्दली स्वोपज्ञवृत्ति सहित । रचना
सं० १६२५ । पत्रसंख्या १५३ । लिपिकाल सं० १६५२ । आत्मानन्द
जैन भंडार, अंबाला शहर । भंडार सूची नं० ४८६ । (ख) भुवनभानु केवलिचरित्र ( संस्कृत गद्य) । रचनाकाल-" संवश्चन्द्रघना
श्रयाष्टकमही संभाविते वत्सरे” १८०१ । पत्रसंख्या १५२ । आत्मानन्द
जैन भंडार, अंबाला शहर । भंडार सूची नं० ५८८ । (४) अशुद्धि निवारण--पर्याप्त अथवा उचित सामग्री न मिलने के कारण जैन ग्रन्थावली तथा मोहनलाल देशाईकृत जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास में कई न्यूनताएं रह गई हैं। पंजाब जैन भंडारों के निरीक्षण से इन में कई भूलें सुधारी जा सकती हैं। उदाहरणार्थ उदयप्रभसूरिकृत उपदेशमालावृत्ति ( कर्णिका ) । पूर्वोक्त दोनों पुस्तकों में इस का रचनाकाल सं० १२९९ लिखा है ( ग्रन्थावली पृ. १७१, मोहनलाल देशाई, ५५३ ) । परंतु वास्तव में इस की रचना " वर्षे निधीन्दुनयनेन्दुमिते " अर्थात् सं० १२१९ में हुई+। अंबाला शहर के भंडार की प्रति नं० ९६ तथा पट्टी ( जिला लाहौर ) के भंडार की प्रति (बंडल नं० १ ) में यही पाठ है।
(५) अन्यत्र अनुपलब्ध गुजराती ग्रन्थ
(क) मृगावतीनी चौपई-अंबाला शहर भंडार--नं. २८६
(ख) सीतारामनी चौपई-,, ,, -नं. २२१ ये दोनों ग्रन्थ खरतरगच्छीय समयसुन्दरकृत हैं जो सकलचंद के शिष्य थे । समयसुन्दर अकबर के समय में हुए। इन्हों ने लाहौर में रहकर अष्टलक्षी नामक ग्रन्थ की रचना की। पंजाब में खास २ दिनों में जीवहिंसा विशेष कर गौहिंसा बंद कराई । ( मोहनलाल
७ बीकानेरनिवासी श्रीयुत अगरचंद नाहटा लिखते है कि बीकानेर भंडार में यह ग्रन्थ विद्यमान है। __ + इस वर्ष में कर्ता की विद्यमानता हो नहि सकती । कर्ता मंत्री वस्तुपाल का गुरु विजयसेन सूरि का शिष्य था। सं. १२९९ का वर्ष बराबर लगता है। ‘निधीन्दु' शब्द में कुछ गलती होगी--संपादक।
८ देखिये नोट नं. ६.
•: १६२ .:
[ श्री आत्मारामजी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org