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मुनि श्री ज्ञानसुंदर
प्रदेशों में जो विद्वान् जैन धर्म के विषय अनेक कल्पनाएँ कर भ्रमित हो रहे थे वे जैनधर्म का सत्य स्वरूप को जान कर सेंकडो विद्वान जैनधर्म प्रति सहानुभूति प्रदर्शित कर रहे है इतना ही नहीं पर कई यूरोपियन तो जैनधर्म स्वीकार कर नियम-व्रत भी पालन करने लग गये हैं। चिकागो शहर में जो गान्धी सोसायटी ने जो जैनधर्म का प्रचार किया है यह सब आप की असीम कृपा का ही प्रभाव है। इस महान् उपकार के बदले में हम लोग क्या कर सक्ते है अर्थात् जितना करे उतना थोड़ा में थोड़ा ही है ।
हे पूज्यपाद ! आपश्री ने केवल पंजाब का उद्धार कर पंजाबकेसरी पद पाया वैसे मरुधर का भी उद्धार आप ने ही किया है क्यों कि आप ने मरुधर में पदार्पण किया उसके पूर्व मारवाड़ प्रान्त में मूर्तिपूजक समाज नाम मात्र का ही रह गया था । मूर्ति नहीं माननेवालों की चारों
ओर प्रबलता ने अपना अड्डा जमा रखा था । रहासहा मूर्तिपूजक समाज का आचारव्यवहार, क्रियाकाण्ड और संस्कारों में कई प्रकार का परावर्तन होने लग गया था पर आप श्रीमान ने वि. सं. १९३४ का चातुर्मास मारवाड की मुख्य राजधानी जोधपुर में किया और जनता को सच्चा उपदेशरूपी अमृत पान कराया जिस से जोधपुर में १०० घर मूर्तिपूजकों के माने जाते थे एक ही चातुर्मास में ५०० घर बन गये। इसीप्रकार आप मारवाड़ के छोटे-बड़े ग्रामों में भ्रमण कर जो अनभिज्ञ एवं अबोध लोग मिथ्या उपदेश के कारण भ्रम में पड़ गये थे उन का भी आप ने उद्धार किया। आज मारवाड़ के शहरों में ही नहीं पर छोटे-बड़े ग्रामों में भी जैन मूर्तिपूजक समाज दृष्टिगोचर हो रही है यह आपश्री के जबर्दस्त उपदेश का ही प्रभाव है ।
हे धर्मोद्धारक ! जिन जैन मन्दिरों की घोर आशातना हो रही थी, जैन ज्ञानभण्डार चार दीवालों के बिच सड़ रहे थे पर आपश्री के पूर्ण परिश्रम और प्रयत्न के कारण मन्दिरों की आशातना दूर हुई, ज्ञानभण्डार प्रकाश में आये, जीर्ण मन्दिरों का उद्धार, नये मन्दिरों का निर्माण, अनेक लायब्रेरियों, पुस्तक प्रचार मण्डलादि कार्य हुआ। इस महान् उपकार का बदला तो हम किसी हालत में दे ही नहीं सक्ते है पर मारवाड़ी जैन समाज आप को धर्मो. द्धारक एवं मरूधर केसरी कहें तो कोई अधिकताई की बात नहीं है । हे प्राणेश ! उसमें यह दास भी एक है कि विनय, भक्ति और श्रद्धापूर्वक श्रद्धाञ्जलि आपश्री के चरणकमलों में अर्पण करता हैं।
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