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पल्लीवाल गच्छ पट्टावली
५८४
वज्रशाखा
७x
११ १४ , दिन १२ १५ , सिंहगिरि १३ १६ , वज्र
१७ , रथ (१८ , पुष्पगिरि १४ १९ वज्रसेन
६२० १५ २० +चंद्रसूरि
६२७ चांद्रकुल* ( इतिहासतत्त्वमहोदधि मुनिवर्य कल्याणविजयजी ने “ वीर निर्वाण संवत् और जैन काल गणना” नामक निबन्ध में इस विषय पर प्रमाणपुरस्सर और विद्वत्तासूचक काफी प्रकाश डाला है उनके मतानुसार आर्यसुहस्ती और वज्रस्वामी के मध्य की, काल गणना में १३ वर्ष कम होने चाहियें अतः उनके मतानुसार वज्रस्वामी का वीरात् ५७१ और वज्रसेन का निर्वाण ६०७ संवत होता हैं । विशेष ज्ञातव्य उक्त निबंध से जानना चाहिये )
चंद्रसूरि के पश्चात् भी आचार्यों का स्वर्गवास संवत इस पट्टावली में लिखा है यह इस पट्टावली की एक विशेषता है पर संवत सशंकित हैं।
चंद्रसूरिजी के पश्चात् प्रस्तुत पट्टावली में जिन २ आचार्यों का नाम और ( स्वर्ग ) समय लिखा है वह कहाँतक ठीक है, प्रमाणाभाव से इस विषय में कुच्छ भी नहीं कहा जा सकता, याने इसकी परीक्षा के प्रमाणों का नितान्त अभाव हैं । तब भी निकटवर्ती जिन २ आचार्यों के समय सम्बंधी जो कुछ प्रमाण मिलते हैं, उनसे प्रस्तुत पट्टावली में लिखित कई आचार्यों का समय अप्रमाण ( गलत-भ्रमित ) ज्ञात होता है जिसके कुछ उदाहरण नीचे दिये जाते हैं:
+ नम्बरों और नामों के सापेक्ष पाठान्तरों के लिये देखें-पट्टावली समुच्चय ' 'खरतरगच्छ पट्टावली संग्रह' और 'वीर निर्वाण संवत् और जैन कालगणना' नामक निबंध ।
x खरतरगच्छीय पट्टावली (क्षमाकल्याण कृत) में-'गृहे ३७ सामान्य व्रते २३ सूरिपदे ७ सर्वायु ६७"। _* वर्तमान में विद्यमान खरतर, तपा, अंचल, पायचंद्रीया (नागोरी तपा) आदि गच्छ इसी चांद्रकुल की परम्परा में से हैं । पल्लीवालगच्छ भी इसी चांद्रकुल की परम्परा में था यह इस पट्टावली से सुनिश्चित और स्पष्ट ही है ।
पल्लीवालगच्छ की प्रस्तुत पट्टावली चंद्रसूरि तक तो अन्य गच्छीय पट्टावलीयों से मिलती हुई है पर इसके आगे सर्वथा स्वतंत्र है ।
१९० :
[ श्री आत्मारामजी
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