Book Title: Atmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Atmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
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श्री. अगरचंद नाहटा
इतिहास प्रजा-पीडन करनेवाले अन्यायी राजाओं को त्रिशूल दिखाकर धमकानेवाला महारुद्र है। इतिहास बुद्धिमान राजाओं को सुमार्ग पर चलानेवाला सद्गुरु है । इतिहास राजनीतिविशारदो का जीवन है। पुरातत्त्ववेत्ताओं का सर्वस्व है । कवियों की चातुरी का मूलाधार है। अच्छे राजाओं की कीर्तिचंद्रिका का चंद्रमा है । इतिहास कालघटा के अन्धकार में छुपे हुए नररत्नों के चरित्रों को दिखानेवाला सूर्य है। अधिक क्या ? इतिहास एक अगणित प्रभाव रखनेवाला अनुपम चिन्तामणि रत्न है।"
जैन इतिहास के उल्लेखनीय अङ्गों में पट्टावलियों का स्थान बहुत ही महत्त्व का है। इसीलिये उनका प्रकाशन नितान्त उपयोगी और परमावश्यक माना जाता है, पर अद्यावधि प्रकाशित पट्टावलीयों की संख्या नगण्य है । श्वेताम्बर समाज में ८४ गच्छों के नाम सुप्रसिद्ध हैं पर पट्टावलीयों या आचार्यपरम्परा मात्र विद्यमान ४-५ गच्छों+ और उनकी शाखाओं की ही प्रकाशित हुई हैं । हाँ, काल की विषमतावश सब गच्छवालों की पट्टावलियों का उपलब्ध होना असंभव हैं पर अभीतक खोजशोध भी यथेष्ट नहीं हुई, तो यह दोष किसे दें ?
प्रस्तुत 'पल्लीवाल गच्छ पट्टावली ' अप्रकाशित पट्टावलीयों में से एक है । बीकानेर (बड़ा उपाश्रय) बृहत् ज्ञानभंडार की सूचि करते समय एक गुटकाकार पुस्तक में यह पट्टावली उपलब्ध हुई थी। यह गुटका उसी गच्छ के यतिओं का लिखा हुआ है । ( पट्टावली-लेखनप्रशस्ति इसी पट्टावली के अन्त में दे दी गई है ) इसी गुटके से तद्वत् नकल कर के इस लेख के साथ प्रकाशित की जाती है। .
___ इस गच्छ का सम्बन्ध पल्लीवाल ज्ञाति और पाली (जोधपुर राज्य में ) नगर से सविशेष जाना जाता है, अतः पल्लीवाल ज्ञाति के विषय में विचार-विमर्श करने की इच्छा थी, पर विद्वद मुनिवर्य दर्शनविजयजी से ज्ञात हुआ कि वे शीघ्र ही “ पल्लीवाल जाति का इतिहास" हिन्दी में प्रकाशित करनेवाले हैं, अतः उसके प्रकाशन के पश्चात् ही इस विषय में लिखना उचित समझकर प्रस्तुत पट्टावली के सम्बंधी ही ' विशेष ज्ञातव्य ' पीछे लिखा गया है।
१८ वीं शताब्दि के पूर्वार्द्ध तक इस गच्छ की आचार्यपरम्परा अविच्छिन्न चलती रही है (और १९ वीं शताब्दि के शेषार्द्ध में महेश्वरसूरिजी के बाद अजितदेवसूरिजीx से गच्छभेद, और ‘क्रियाउद्धार' का उल्लेख प्रस्तुत पट्टावल्ली में पाया जाता है) पर इस के बाद का इति
____ + १ खरतर, २ तपा, ३ अंचल, ४ उपकेश, ५ नागौरीतपा ( पायचंदीय ) गच्छ । ____x अजितदेवसूरिजी के पट्टधर कौन हुए यह भी अज्ञात है ।
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