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इतिहास की उपयोगिता-बहुत प्राचीन काल से है-कल्पसूत्र में भद्रबाहुस्वामी ने चार वेदों के पश्चात् पांचमा इतिहास का उल्लेख किया है इससे इतिहास की उपयोगिता प्राचीन काल में भी उल्लेखनीय थी, यह स्पष्ट है ।
__इतिहास की महिमा-राजतरङ्गिणी के ( हिन्दी अनुवाद ) प्रस्तावना में पं. नंदकिशोरजी शर्मा इतिहास की महिमा का क्या ही सुन्दर वर्णन करते है:
" इतिहास से ही देश का अस्तित्व, गौरव, आचार, प्रकृति, विचार, धर्म आदि जाना जाता है । इतिहास देखकर ही राजा प्रजापालन में उत्तम रूप से समर्थ होता है । मंत्रीवर्ग उदार सन्मति देने की क्षमता रख सकते हैं । प्रजा निज २ धर्म में रत होकर अपने कर्तव्य को पहिचानने लगती है । इतिहास बिगड़ी अवस्थावालों के ( उन्नत ) बनने का सोपान है और बने हुओं के देदीप्यमान होने का सामान है । मनुष्य योगबल की तरह इतिहास से भी मालूम कर सकता है कि हम क्या थे और क्या हो गये, तथा आगे को कैसे हो जायगे ? इतिहास लक्ष्मीमद से अन्धों की आँखें खोलने को ज्ञानाञ्जनशलाका है । इतिहास राज-सन्निपात घोर निद्रा में सोते हुओं को चैतन्य करानेवाला चंद्रोदय रस है। इतिहास विषय विषविशूचिका से बेचैनों को बचानेवाला राजवैद्य है । इतिहास हुकूमत के घमण्ड में मृत्यु को भूले हुओं को स्वर्ग नरक का भान-चित्र दिखलानेवाला विश्वकर्मा है । इतिहास उत्कोच (घूस) खानेवाले मोटे बिलाव राजकर्मचारियों को यमलोक के कुत्तों से डरपानेवाला कालभैरव है।
x जोवणगमणुपत्तेरिउवेय जउवेय सामवेय अथव्वणवेय इतिहासपंचमाणं ( कल्पसूत्र )
[ श्री आत्मारामजी
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