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गुरु स्तुति
(लेखक-श्रीयुत शेठ कनैयालालजी जैन, “जैन कवि " आनरेरी मैजिस्ट्रेट, करतला)
( संगीत मिश्रित काव्य ।)
पूज्य गुरु विजयानंद ! तुम को लाखों प्रणाम । तुम को
नभ में घोर तिमिर था छाया, फैली थी मिथ्यातम माया;
सघन घनों की काली काया, सहसा सूर्य सहस्रों प्रगटे नव छवि धाम । तुम को० ॥१॥
तीव्र तेज जगती पर जागा, मिथ्या नैश अंध-तम भागा;
पक्षी गण ने स्वागत-गा, गा, कलरव से अभिनंदित तुम को किया सुख-धाम । तुम को० ॥ २ ॥
कल कोकिल ने कलित गान से, देव-वधू ने सरस तान से;
अखिल प्रकृति ने स्नेह ध्वान से, तुम्हें किया आह्वान कि 'प्रगटो' आत्माराम । तुम को० ॥ ३॥
धारा जन्म, जगत-दुःख टारा, जैन जाति का पतन निवारा;
बही स्नेह की मधु-रस-धारा, प्रेम-पयस्विनि प्रगटी डूबे पाप ताप दुष्काम । तुम को० ॥ ४ ॥ शताब्दि ग्रंथ ]
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