Book Title: Atmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Atmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
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गुरु स्तुति
जग से अत्याचार मिटाये, मिथ्या पापाचार भगाये;
विजयी विजयानंद कहाये, जैन-जाति-जय-गान जगत में हुआ सब ठाम । तुम को० ॥ ५ ॥
'आत्माराम' अमित गुणधारी, 'विजयानंद ' विश्व जयकारी;
जय गुंजित थी वसुधा सारी, अमेरिका तक पहुंचा था जयघोष ललाम । तुम को० ॥६॥
विभु नयनों में विधु-विलास था, अधरों पर मृद मंद हास था;
विश्व-विमोहक मुखाभास था, उन्नत देह, उदारमना मुद मंगल-धाम । तुम को० ॥ ७ ॥
सत्य अहिंसा-ध्वज फहराया, सुखद वीर संदेश सुनाया;
सोतों को झकझोर जगाया, जैन सिंह जागे, वादी भागे अविराम । तुम को० ॥ ८॥
निर्मल थे गंगाजल से तुम, विस्तृत उच्च हिमाचल से तुम
पावन नीलनभांचल से तुम, तुम में जल-स्थल-गिरि-नभ-छवि छाई सुखधाम । तुम को० ॥९॥
विश्व-प्रेम-पय-धार तुम्हीं थे, इस संसृति के सार तुम्हीं थे;
हम सब के आधार तुम्हीं थे, जय हो प्रभु विजयानन्द गुरुवर आत्माराम । तुम को० ॥ १० ॥
[ श्री आत्मारामजी
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