________________
श्री. विजयानन्दावतार
जीवन भर ज्ञानप्रचार किया,
नित दीन दुःखी उद्धार किया; पीड़ित जन का उपकार हुआ, आनंद ! विजय ! ! आनंद ! विजय !! ॥५॥
प्रभु का जयनाद हुआ जग में,
मृतप्राय विवाद हुआ जग में; जग में जैनत्व-प्रचार हुआ, आनंद ! विजय ! ! आनंद ! विजय ! ! ॥ ६ ॥
गुंजित पाताल हुआ जय से,
वादीगण भाग ऊठे भय से; चमकित संसार उदार हुआ, आनंद ! विजय ! ! आनंद ! विजय !! ॥ ७ ॥
छाई सुछटा नव जीवन की.
प्रतिभा चमकी कवि की मन की; तंत्री का झंकृत तार हुआ, आनंद ! विजय !! आनंद ! विजय !! ॥ ८ ॥
चहुं और सुधा-रस-धार बही,
मलयानिल मन्द बयार बही; मधुमय सुवसंत प्रचार हुआ, आनंद ! विजय !! आनंद ! विजय !! ॥९॥
पतितों का प्रभु! उत्थान किया,
मृतकों को जीवन दान दिया; गत प्राण पुनः संचार हुआ, आनंद ! विजय !! आनंद ! विजय !! ॥ १० ॥
फिर जैन धर्म उद्धार हुआ,
प्रभु का अनंत उपकार हुआ; यह भारत स्वर्गागार हुआ, आनंद ! विजय !! आनंद ! विजय !! ॥ ११॥
१ " पाताल"=अमेरिका-लेखक ।
[श्री आत्मारामजी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org