Book Title: Atmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Atmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
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श्री. बनारसीदास जैन (१) किशोरीदासकृत बारहखड़ी ( विषय उपदेश ), रिपोर्ट सन् १९०४ पुस्तक नं० १०।
(२) विष्णुदासकृत बारहखड़ी (विषय कृष्णचरित्र), रिपोर्ट सन् १९०९-१०-११, पुस्तक नं० ३२७ ।
(७) नागरी-पंजाबी पुस्तक ---अर्थात् देवनागरी लिपि में पंजाबी भाषा के पुस्तक ।
पंजाबी पुस्तक प्रायः दो लिपियों-गुरुमुखी और फ़ारसी लिपि में लिखे जाते थे। देवनागरी में लिखा हुआ एक आध पुस्तक ही उपलब्ध होता था, परंतु जैन भंडारों में कई पुस्तक मिलते हैं।
( क ) बारामास शेरूराम ( जीरा भंडार नं० ५६७ ) अंत-राम बषश जी महाराज मेरे पूरे करो काज ।।
शेरूराम दे सिरताज तुसी बहुत दीजो दिलों जान के ॥ ( ख ) बैतं [ दीदारसिंघ ? ] ( नकोदर भंडार नं० १३६ ) । अंत तेरे कारणे आइ फकीर होए धन माल मताह छुडाय के नी।
दीदारसिंघ पियारे नै वस्स कीत्ती सीने प्रेम पियारु लगाइ के नी ॥३०॥ (ग ) जैन स्वरूप ( गुजरांवाला मन्दिर भंडार, काशीनाथ कुण्टे की रिपोर्ट
सन् १८८०-८१, परिशिष्ट नं० २२७ लाहौर की छपी हुई )। ( ८ ) गुरुपरम्परा-पंजाब के जैन भंडारों से कई एक प्रसिद्ध साधु तथा यतियों की गुरुपरम्परा का पता चलता है । जैसे
( क ) स्वर्गवासी श्रीमद्विजयानन्दसूरिजी महाराज की ढूंढक मत की गुरुपर
म्परा। उन्हों ने सं० १९१७ में सरगथल में केशराजकृत रामचरित्र की प्रतिलिपि की जो अम्बाला शहर भंडार में (नं० ४९१) विद्यमान
है, उस में अपनी गुरुपरम्परा इस प्रकार दी हैजोगराज-हजारीमल-लालजीराम-गंगाराम-जीवणराम-आत्माराम ।
(ख ) प्रसिद्ध यति मेघराज की गुरुपरम्परा जो ऊपर दी जा चुकी है । शताब्दि ग्रंथ ]
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