Book Title: Atmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Atmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
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श्री. बनारसीदास जैन
जैन साहित्य; अंग्रेजी अनुवाद, कलकत्ता, सन् १९३३ ) में किसी ऐसे जैन श्वेताम्बर ग्रन्थ का नाम दृष्टिगोचर नहीं हुआ जिस का उल्लेख उक्त दो पुस्तकों में न हो ।
(२) प्राचीनता- - यद्यपि पंजाब के जैन भंडार पाटन, खंभात, जैसलमेर आदि की भांति प्राचीन नहीं, और नाही इन में कोई ताड़पत्र की प्रति उपलब्ध हुई है, तथापि इन में कई प्रतियां पांच सौ वर्ष या इससे भी अधिक प्राचीन मिलती हैं । कागज पर लिखी हुई प्राचीन से प्राचीन प्रति वि० सं० १३६५ की है । इस दृष्टि से प्रतियां कुछ कम महत्त्व की नहीं । उदाहरण के लिये देखिये -
पंजाब की
(क) उदयप्रभसूरिकृत उपदेशमालावृत्ति ( रचनाकाल, वि० सं० १२१९ ) । पत्र १०१ - २०६, अपूर्ण । लिपिकाल, सं० १४८० या १४८१ । आकृति प्राचीन ।
(ख) हेमचन्द्राचार्यकृत अनेकार्थी । पत्रसंख्या ३७ । लिपिकाल सं० १४९३ । आकृति प्राचीन |
(ग) श्रावक धर्मवृत्ति | पत्रसंख्या १४ | लिपिकाल सं० १४९९ । आकृति प्राचीन । ये तीनों प्रतियां श्री आत्मानन्द जैन भंडार, अंबाला शहर में विद्यमान है जिन के नंबर भंडार सूची में क्रमशः ९६, ३६७ और ८७२ हैं ।
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इन के अतिरिक्त बहुतसी प्रतियां ऐसी हैं जिन पर लिपिकाल दिया हुआ नहीं परंतु देखने में इतनी ही या इन से अधिक प्राचीन प्रतीत होती हैं । विक्रम सोलहवीं तथा सतरहवीं शताब्दि की लिखी हुई तो सैंकड़ों प्रतियां मिलती हैं । ये प्रतियां प्रायः शुद्ध हैं क्यों कि एक तो मुनिराजों के हाथ की लिखी हुई हैं, दूसरे पीछे से बांचनेवालों ने भी शुद्ध कर दी हैं ।
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(३) अन्यत्र अनुपलब्ध ग्रन्थ - यद्यपि पंजाब के भंडारों में ऐसे ग्रन्थों के
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५ आर्चिबाल्ड ऐडवर्ड गनुः पेपर्स रिलेटिङ् टु कलॅक्शन ऐंड फ्रेंज़र्वेशन ऑफ एन्शन्ट संस्कृत लिद्रेचर इन इंडिया कलकत्ता, सन् १८७८ पृ० १६ । इस के पश्चात् इस से अधिक प्राचीन प्रति शायद कोई नहीं मिली ।
६ अर्थात् जिनका उल्लेख जैन ग्रन्थावली तथा श्री. मोहनलाल दलीचंद देशाईकृत जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास में नहीं है ।
शताब्दि ग्रंथ ]
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