Book Title: Atmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Atmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
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पंजाब के जैन भंडारों का महत्व
दिगम्बर अंबाला छावनी
हिसार
रोहतक जालन्धर छावनी फिरोज़पुर
अमृतसर
लाहौर इत्यादि में
स्थानकवासी लुधीआना अमृतसर स्यालकोट रावलपिंडी जम्मू इत्यादि में
इन के अतिरिक्त और भी कई स्थानों में छोटे २ भंडार होने की संभावना है। स्वत्व की अपेक्षा ये भंडार तीन प्रकार के हैं
(१) श्री संघ के जो श्री जिनमंदिरों या उपाश्रयों में संघ की ओर से नियत पुरुषों की देखरेख में हैं।
(२) पूज्य यतियों के जो उनकी अपनी देखरेख में हैं । अब पंजाब में यतियों की संख्या बहुत घट गई है, केवल दो चार नगरों में रह गए हैं।
(३) साधु मुनिराजों तथा कई श्रावकों के अपने २ व्यक्तिगत पुस्तक संग्रह ।
इन भंडारों की रक्षा का प्रबन्ध प्रायः संतोषजनक है क्यों कि जैनियों का मानना है कि धार्मिक पुस्तक लिखने, लिखाने तथा उनकी रक्षा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है (देखिये श्री रत्नमन्दिरगणिविरचिता उपदेशतरङ्गिणी, काशी. वीर सं० २४३७ पुस्तक लेखनोपदेश पृ. १३९-४२)। बहुधा पुस्तकों को कागज में लपेट कर और कपड़े के बेठन-वेष्टन (रुमाल) में बांध कर, लकड़ी के डब्बों में डाल कर संदूक या अलमारी में रखा जाता है । बरसात हो चुकने पर इन को धूप और हवा लगवा दी जाती है ताकि सूक्ष्म जन्तु उत्पन्न न हो जावें; परंतु किसी २ जगह बड़ी लापरवाही से रखे जाते हैं । लेखक ने एक नगर में देखा कि लिखित पुस्तकों की अलमारी खिड़की के पास रखी हुई थी जिस में से वर्षा के पानी की बौछाड़ अलमारी पर पड़ती थी। दैवयोग से अलमारी में एक छेद था। इस के द्वारा बौछाड़ के पानी ने पुस्तकों को भी खराब कर दिया था।
एक दूसरी जगह देखा कि वहां के पूज्य यति के काल कर जाने पर उनके पुस्तक भंडार को स्थानकवासी भाई ले गये। उन्हों ने भंडार को एक कोठे में रख दिया । बरसात में छत टपकने लगी । जब दो चार बरस के पिछे ग्रन्थ निकाले तो वे सब खराब
[ श्री आत्मारामजी
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