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अहिंसा और विश्वशांति केवलज्ञान ) को प्राप्त कर आत्मिक स्वाभाविक स्वाधीनता-अनाकूलतात्मक सुख को प्राप्त कर लेते हैं तथा अनन्त काल तक अपने शांतिमय स्वरूप में निमग्न रहते हैं। यही आत्मा का उच्च एवं श्रेष्ठ लक्ष्य है । ___गृहस्थ जन एक देश अहिंसा के परिपालन में समर्थ होते हैं। वे गृहस्थी में रहकर पूर्ण हिंसा का त्याग नहीं कर सकते । उन्हें अपने परिवार की, अपने देश की, अपनी धनसंपत्ति की रक्षा करने के लिये एवं अपने जीवननिर्वाह के लिये आरंभ अवश्य करना पड़ेगा। उसमें वे सूक्ष्म एवं अपरिहार्य हिंसा का त्याग नहीं कर सकते । इसलिये गृहस्थ, जो अपनी गृहस्थी लेकर ही बैठे हुए हैं सर्वदेश हिंसा के त्यागी नहीं हैं; स्थूल एवं परिहार्य हिंसा के त्यागी हैं । त्रस हिंसा और स्थावर हिंसा के भेद से भी हिंसा दो भागों में बंट जाती है। त्रस हिंसा के भी चार भेद किये गये हैं-१ संकल्पी, २-आरंभी, ३-उद्योगी, ४-विरोधी । विना अपराध के जानबुझकर किसी प्राणी का घात करना संकल्पी हिंसा कहलाती है। जो रोटी बनानेवाले खाने आदि आरंभ में हिंसा होती है वह आरंभी हिंसा है। व्यापार आदि आजीविका सम्बन्धी उद्योगधन्धों में जो हिंसा होती है वह उद्योगी हिंसा कहलाती है। आक्रमणकारियों से आत्मरक्षा एवं परिवार तथा देश, धर्म की रक्षा करने में जो हिंसा की जाती है वह विरोधी हिंसा है । इन चारों प्रकार की हिंसाओं में गृहस्थ सिर्फ संकल्पी हिंसा का त्यागी है इतर तीन प्रकार की हिंसाओं का नहीं-सिर्फ उनमें निरर्थकता का परिहार करे।
. अब विचारणीय यह है कि गृहस्थ अहिंसक रहकर राष्ट्रीय तथा राजनैतिक कार्यों में सहयोग कर सकता है या नहीं? इस का उत्तर उक्त विवेचन से स्पष्ट हो जाता है फिर भी यहां और विशेष खुलासा करदेना उचित है । गृहस्थ राष्ट्रीय एवं राजनैतिक कार्यों को अहिंसक रहकर भी भली प्रकार कर सकता है। बल्कि अहिंसक मनुष्य नीति एवं दक्षता के साथ उक्त कार्यों को करने में समर्थ होगा जब कि हिंसक उन कार्यों को अपने स्वार्थों एवं कुटिल नीति से करेगा । अहिंसक सर्वदा प्रजाजन के हित के लिये अपने स्वार्थों को ठुकरायेगा, दुष्टों का निग्रह करेगा, साधुजनों पर अनुग्रह करेगा। ऐसी हालत में अहिंसा को कायरता, भीरुता की जनक कहना नितान्त गलत है। इस कहने में जरा भी सत्यांश एवं प्राण नहीं हैं। महात्मा गांधी ने यह सिद्ध कर दिया है कि राष्ट्रीयस्वाधीनता प्राप्ति का एक मात्र साधन एवं अमोघ शस्त्र सत्य और अहिंसा है। अहिंसा शस्त्र के सामने विरोधियों के भौतिक शस्त्रास्त्रों की कोई कदर नहीं है ।
___अहिंसा वह शस्त्र है जिस के सामने हम विरोधियों एवं अत्याचारियों के दांत .: १३६ :
[श्री आत्मारामजी
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