Book Title: Atmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Atmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
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सूरीश्वरजी के पुनीत नामपर रही है । इस प्रकार के कई कार्यों के अतिरिक्त सभा ने “भारत वर्ष इतिहास संशोधन" का महत्वपूर्ण कार्य किया, जिस का सभा को गर्व होना चाहिये, जैनों का अपना कोई सुन्दर सुसंबद्ध, और प्रमाणिक इतिहास नहीं, पाश्चात्य विद्वानों ने भारत के इतिहास में जैनों के विषय में अंडबंड लिखा है, भारतीय विद्वान भी इतिहास लिखते समय स्वतन्त्र खोज का कष्ट न उठा कर उनकी नकल करते हैं और फिर वही पुस्तकें स्कूलों में हमारे बालक बालिकाओं को पढ़ाई जाती हैं, जिस के परिणामस्वरूप जैन धर्म के विषय में उनके विचार भ्रान्त व कुत्सित हो जाते हैं सभाने इस ओर पूरा लक्ष देकर लेखकों एवं प्रकाशकों को मूर्तियों और प्रमाणों सहित वासविकता का परिचय दिया,
और अपनीभूल सुधारने के लिये बाधित किया, जिसका परिणाम यह हुआ कि एक दर्जन से अधिक पुस्तकों के नवीन संस्करणों में संशोधन हो चुका है, इस सम्बन्ध में सभाने भारत वर्ष का इतिहास और जैन धर्म, पुस्तक प्रकाशित की है, जिस से सब कुछ विस्तृत मालूम होगा। पिछले वर्षों में सभा की ओर से छात्रवृत्ति भी दी जाती रही यह विद्यार्थी भिन्न भिन्न कॉलेजों में शिक्षा पारहे थे, इस प्रकार इस सभाने कई स्तुत्य कार्य किये, ऐसे ही पंजाब में गुरुदेव के नामपर चलनेवाली अन्य सभाओं ने भी कुछ पुस्तकें प्रकाशित की, जिस में आत्मानन्द जैन सभा जीरा का नाम उल्लेखनीय है, जहां से कई भजन आदि की पुस्तकें निकलीं, आत्मानन्द जैन सभा लाहौर से भी दो एक पुस्तकें प्रकाशित हुई थीं।
लायब्रेरियां: पंजाब के प्रत्येक मन्दिर के साथ गुरुदेव ने ग्रन्थ भण्डार भी स्थापित कराये, परिणाम स्वरूप जहां सैंकड़ो हस्तलिखित बहुमूल्य ग्रन्थ विद्यमान हैं परन्तु यहां उन ग्रन्थ भण्डारों का ही नहीं बल्कि गुरुदेव के नाम से चलनेवाले पुस्तकालय व वाचनालयों का भी यहां निर्देश किया जाता है-- श्री आत्मानन्द जैन लायब्रेरी अम्बाला शहर--
सन् १९२२ में अम्बाला जैन समाज के अहोभाग्य से वहां श्री विजयवल्लभमूरिजी का दूसरी बार चतुर्मास हुआ, जिस चतुर्मास में कई महत्वपूर्ण काय हुए, जिन में का एक कार्य यह भी है।
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[ श्री आत्मारामजी
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