Book Title: Atmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Atmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
View full book text
________________
सूरीश्वरजी के पूनीत नामपर समाज में पत्र-पत्रिकायें धर्म का अच्छा प्रचार कर सकती हैं, और उनके संस्कारों को दृढ रख सकती हैं। हमारे श्री विजयानन्दसूरीश्वर के नाम से जो पत्र-पत्रिकायें प्रकाशित हुई उनका संक्षिप्त इतिहास यहां दिया जाता है ।
आत्मानन्द प्रकाश--यह गुजराती मासिक पत्र श्री आत्मानन्द जैन सभा भावनगर की ओर से बराबर ३४ वर्ष से निकल रहा है, यही उसकी उपयोगिता का पर्याप्त प्रमाण है, यह आजीवन सदस्यों को फ्री दिया जाता है, तथा ग्राहकों से वार्षिक मूल्य के ११) रु. ही लिया जाता है । लेख अच्छे उपयोगी होते हैं ।
आत्मानन्द पत्रिका--यह हिन्दी मासिक पत्रिका भी ३४ वर्ष पूर्व ई. सन् १९०० में श्री आत्मानन्द जैन सभा पंजाब की ओर से प्रकाशित हुई । पंजाब जैसे देश में जहां उर्दू भाषा की ही प्रधानता है वहां ऐसी पत्रिका का संचालन करना परिश्रम और साहस का ही काम है। इधर प्रेसों की दिक्कतें और उधर हिन्दी लेखकों की कमी भी विचारणीय थी, परन्तु गुरुदेव के आशीर्वाद से यह पत्रिका छ वर्ष तक मासिकरूप में और एक वर्ष साप्ताहिक रूप में प्रकाशित हुई । उस समय जैन समाज में हिन्दी भाषा की निकलनेवाली यही एक मात्र पत्रिका थी, जिसका संचालन श्रीयुत बाबू जसवन्तरायजी निःस्वार्थभाव से करते रहे, जिसके लिये वे धन्यवाद के पात्र हैं।
सात वर्ष के संचालन के बाद बा. जसवन्तरायजी को अन्य कार्यों की अधिकता के कारण इसके लिये समय निकालना कठिन हो गया, और वेतन देकर कोई आदमी न रखा जा सका और सन् १९०७ में पत्रिका का प्रकाशन बन्द हो गया।
___ आत्मानन्द--यह हिन्दी मासिक पत्रिका समाज की मांग पर श्री आ. नं. जै. ट्रैक्ट सोसायटी अम्बाला की ओर से सन् १९३० से पुस्तकाकार प्रकाशित होना प्रारम्भ हुआ उस ही समय श्री आ. नं. जैन गुरुकुल पंजाब से एक त्रेमासिक पत्र 'प्रभात' भी प्रकाशित हो रहा था। श्री आत्मानन्द जैन महासभा पंजाब के सितम्बर १९३० के अधिकवेशन में यह प्रस्ताव हुआ कि गुरुकुल के पत्र 'प्रभात' और ट्रैक्ट सोसा. यटी के 'आत्मानन्द' को एक साथ मिला दिया जाय और 'आत्मानन्द' पत्र श्री आत्मानन्द जैन महासभा पंजाब, श्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल पंजाब, और श्री आत्मानन्द जैन ट्रैक्ट सोसायटी अम्बाला तीनों संस्थाओं का एक मात्र मासिक मुख पत्र घोषित किया जाय और तीनों संस्थायें समानरूप से इसे सहायता दें इस । प्रस्ताव को जनवरी १९३१ से कार्यरूप में परिणत कर दिया गया और वह आत्मानन्द, पत्र .: ११२:.
[श्री आत्मारामजी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org