Book Title: Atmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Atmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
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सूरीश्वरजी के पुनीत नामपर कुल आर्यसमाजों की ( सभा) संख्या १५१०, समाजों के अपने भवन ८३४, सदस्य संख्या ६,४८,०००, बैतनिक प्रचारक १६५, अवैतनिक २२८, संन्यासी प्रचारक १३०, स्वतंत्र प्रचारक ४०० कुल प्रचारक ९२३ हैं ।
संस्थायें-लड़कों के ६ कॉलेज, ६२ हाईस्कूल, १५० एंग्लोवर्नाक्यूलर मिडिलस्कूल, १९२ प्राइमरी स्कूल, १४२ रात्रिपाठशालायें, १ आयुर्वेद कॉलेज, १ अयोगस्कूल, २८ गुरुकुल, ३०० संस्कृत शालायें, २ योगमण्डल, २ संन्यासीपाठशालायें, ३ कन्यागुरुकुल, २ कन्या कॉलेज, ३ कन्या हाईस्कूल और २६२ कन्या पाठशालायें, ४८ अनाथालय, ४० विधवाश्रम, १४ औषधालय, ३० प्रेस, ४० समाचार पत्र, १०० पुस्तकों की दुकानें और २ बैंक भी हैं।
जैन समाज के बन्धुओ ! अपनी आंखे खोलो। आर्यसमाज आज आगे से भी अधिक उन्नति कर चुका है । उसके प्रेस व पत्र, प्रचारक व स्कूल आगे से भी बढ़े हुए हैं, परन्तु दुर्भाग्य है जैन समाज का जिस के पास पैसे की कमी नहीं, पर एक कॉलेज भी अपना नहीं बना सका । आचार्यश्री इस के लिये प्रयत्नशील हैं, हम प्रार्थना करें कि आचार्यश्री की यह भावना शीघ्र पूर्ण हो । जैन समाज को अपने प्रचार की ओर खूब ध्यान देने की जरूरत है ।जैन समाज के प्रचारक कहां हैं ? और कहां हैं इतनी संस्थायें और पत्र व प्रेस, अनाथों और विधवाओं के लिये क्या प्रबन्ध है ? इन सब प्रश्नों के उत्तर में हम मौन रहेंगे। साधुओं की शिक्षा के लिये कई बार योजनायें उठीं और लीन हो गईं, अच्छे अच्छे कार्य और संस्थायें बड़े जोश के साथ प्रारम्भ हुई और कुछ समय में ही ठण्डी हो गईं । आज श्वेताम्बर समाज के लिये कितनी लज्जा की बात है। कि उनका हिन्दी में एक साप्ताहिक पत्र भी नहीं। मेरी भावना है, कि गुरुदेव के नाम पर जो संस्थायें स्थापित हों, वह खूब दिलचस्पी से कार्य करें, विघ्नबाधाओं की परवाह न करते हुए आगे बढ़ती चली जायें और अब गुरुदेव के नाम पर अन्य सैकड़ों संस्थायें चला कर दिखा दें। गुरुदेव के नाम पर कॉलेज हों, हाईस्कूल हों, गुरुकुल हों, प्रेस हों, पत्र-पत्रिकायें हों, सभायें हों, पुस्तकालय व वाचनालय हों, पुस्तक प्रकाशक संस्थायें हों, भवन हों और हो आत्मानन्द नगर, आत्मानन्द स्टेशन, आत्मानन्द रोड, आत्मानन्द पोस्ट ऑफिस, एक समय ऐसा उपस्थित हो कि हम उनके उपकारों को याद करते हुए उनके नाम पर सब न्योछावर कर दें।
[ श्री आत्मारामजी
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