________________
जैनवीर
ALURU Tum
(लेखकः-श्री कृष्णलाल वर्मा)
आगे जो एक जैन वीर की कथा दी जा रही है, वह किंवदन्ती के आधार पर लिखी गई है। रियासत और जागिर के नाम मैं ने इसलिए नहीं दिये हैं कि, पूरे प्रमाण इस घटना के न होने से रियासत इस के विरुद्ध कारवाई कर सकती है। मैं खोज में हूँ। पूरे प्रमाण मिल जानेपर सब के नाम प्रकाशित कराऊँगा। अभी पाठक इतने ही से संतोष करें और इस कथा के नायक जोरावरसिंह की तरह युद्धवीर और धर्मवीर बनने की कोशिश करें।
(१)
धर्मलाभ की गंभीर ध्वनि सारे घर में गूंज उठी । बालक और बालिकाएँ, युवक और युवतियाँ, वृद्ध और वृद्धाएँ सभी आये और गुरुचरणों में वंदना कर खड़े हो गये। गुरु के भव्य चेहरे से शांति टपक रही थी । ब्रह्मचर्य के तेज से चेहरा दमक रहा था। विशाल नेत्रों से ज्ञान की ज्योति प्रकाशित हो रही थी । मुखमंडल पर मृदु हास्य खेल रहा था।
___ सब आये परंतु गृहस्वामी जोरावरसिंहजी न आये । गुरु महाराज की आँखें चारों तरफ उनको ढूंढ़ रही थीं। गृहस्वामिनी ने सादर विनति की: " आहारपानी दोष रहित शुद्ध है । स्वीकार कर हमें कृतार्थ कीजिए ।"
गुरु महाराज आगे बढ़े और रसोड़े के दर्वाजे पर जा खड़े हुए । गृहिणी हलुवे से भरी कटोरी उठा पात्र में डालने लगी । गुरुजी ने कहा " नहीं रोटी लाओ।' गृहस्वामिनी आग्रह कर रही थी और गुरुजी नाहीं कह रहे थे । छोटा बच्चा मचल गया " गुरुजी को मैं बहोराऊँगा ( भेट करूंगा ), मुझे कटोरी दो ।” कटोरी बच्चे ने ले ली और गुरुजी के मना करते रहने पर भी उसने हलवा पात्र में डाल दिया। गुरुजी हँस पड़े और बोलेः “धर्मलाभ" । बच्चे ने साभिमान माता की तरफ देखा और कहाः " देखा ! अब गुरुजी ने कैसे बहोर लिया ?"
शताब्दि ग्रंथ]
११७:
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org