Book Title: Atmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Atmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
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श्री. ईश्वरलाल जैन श्री आत्मानन्द जैन सभा भावनगर---
स्वर्गीय गुरुदेव के नाम से यह संस्था लगभग ४० वर्ष से स्थापित है, जिस का विस्तृत परिचय पाठक अन्यत्र देखेंगे, संक्षेप में इस संस्था का अपना ही भवन है, जो कि गुरुदेव का एक स्मारक है, इसी स्थान से सैंकड़ो बड़े बड़े ग्रन्थ गुजराती भाषा में निकल चुके हैं। ३४ वर्ष से 'आत्मानन्द प्रकाश' नामक गुजराती मासिक इस संस्था से प्रकाशित होकर समाज-धर्म की सेवा कर रहा है, इस सभा के बहुत से लाइफ मेम्बर हैं, जिनको यह संस्था अपनी प्रकाशित पुस्तकें जो प्रायः दो दो चार सौ पृष्ठ की होती हैं, भेटस्वरूप प्रदान करती है, इस संस्था के आजीवन सदस्यों के पास इनकी पुस्तकों से घर की छोटी सी लायब्रेरी ही बन गई है, इस संस्था ने आत्मवल्लभ ग्रन्थ सीरीज़ और विजयानन्द शताब्दि ग्रन्थमाला, नाम से भी कई पुस्तकें प्रकाशित की हैं। गुरुदेव के नामपर चलनेवाली यह संस्था खूब उन्नति पर है हम इस संस्था का लक्ष्य हिन्दी की ओर भी दिलाते हैं, कि कुछ साहित्य वह हिन्दी में प्रकाशित करे । श्री आत्मानन्द जैन महासभा अम्बाला शहर--
___ पुस्तक प्रकाशक संस्थाओं में यदि हम इस संस्था का नाम भी सम्मिलित करें, तो अनुचित न होगा, पुस्तकें प्रकाशित करने के उद्देश्य से इसी संस्थाने ही ट्रैक्ट सोसायटी को जन्म दिया, परन्तु इस संस्था ने कई ही उपयोगी पुस्तकें अपनी संस्था के नाम से भी प्रकाशित की।
इस सभा की स्थापना शिक्षा प्रचार और सामाजिक कुरीतियों के निराकरण के उद्देश्य से सन् १९१२ में आचार्य श्री के उपदेश से हुई, और सद्गृहस्थों के प्रयत्न से समाज में देवभक्ति, गुरुभक्ति संघशक्ति की उत्तरोत्तर वृद्धि होती रही, जिसका परिणाम यह है कि आज पञ्जाब में श्वेताम्बर जैन समाज में अम्बाला का मुख्य स्थान है, अम्बाला की सभी जैन संस्थायें इसी के ही अन्तर्गत हैं, हाईस्कूल, पाठशालायें, लायब्रेरी, रीडिंगरूम, ट्रैक्ट सोसायटी आदि के संचालन करने वाली यही सभा है । इन कार्यों के अतिरिक्त सभा ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण कार्य भी किये आचार्यश्री ने हिन्दीभाषा में धार्मिक शिक्षा देनेवाली पुस्तकों की कमी देख कर अपने १९२२ के चातुर्मास में एक शिक्षावली तैयार कराई, जो श्री आत्मानन्द शिक्षावली के नाम से चार भागों में सभा की ओर से छप चुकी है, और पंजाब, मेवाड़, मारवाड़, आदि प्रान्तों में पढ़ाई जा अतान्दि ग्रंथ ]
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