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कुछ इधर उधर की यह घटना सम्बत् १९६४ की है। स्वर्गस्थ आचार्यदेव पर अन्य मतावलंबी भी कितनी श्रद्धा रखते थे !
ऐसी ही एक और घटना है । स्वर्गस्थ आचार्यदेव लुधियाना में विराजमान थे। वहां पर कुछ आर्यसमाजी उनसे शास्त्रार्थ करने आये ।
उन में एक बड़ा होशियार बालक भी था। बालक का नाम किशनचंद था और ब्राह्मण जाति का था। उसे समाजी लोग समय समय पर बहस के मौकों तथा व्याख्यान आदि में भी ले जाते थे। वह प्रत्युत्पन्नमति ( हाजरजबाव ) था।
___ आचार्यदेव से उन लोगों ने कुछ प्रश्न किए, उनका उत्तर उन्हें सन्तोषजनक मिल गया। फिर आचार्यदेव ने कुछ प्रश्न किए । समुचित उत्तर न देसकने के कारण वे लोग वितण्डावाद करने लगे। बालक ने ही इनकी युक्ति से भरी हुई बातों को सुनकर उन्हें डांटा और कहा "जिस प्रकार इन महात्मा ने युक्तिपूर्ण उत्तर दिये हैं, उसी प्रकार तुम लोग भी दो ! क्यों व्यर्थ की बकवाद करते हो?" " बहस समाप्त हुई और वे लोग चले गये ।
बालक किशनचंद की महाराज साहब पर उसी दिन से पूर्ण श्रद्धा हो गई, और वह आप का परम भक्त हो गया।
किशनचंद आगे चलकर पटियाला राज्य में वकील हुआ।
सम्बत् १९८९ में मुकाम समाना जिला पटियाला में प्रतिष्ठा महोत्सव था। उस अवसर पर स्वर्गस्थ आचार्यदेव की एक मूर्ति की भी स्थापना होनी थी। बाबू किशनचंद को भी निमन्त्रित किया गया ।
स्थापना में घी की बोली का काम बाबूजी को दिया गया था । आप स्वर्गस्थ आचार्यदेव का परिचय देने के लिए खड़े हुए । बड़ी मुशकिल से दो चार शब्द बोले होंगे, व्याकुल हो उठे । आंखों से आंसू बह चले । गला रुक गया । कुछ देर बाद अपने को संभाल कर उन्हों ने आचार्यदेव का इस रसीली भाषा में परिचय दिया कि सारी जनता मंत्रमुग्ध-सी रह गई।
(धी आत्मारामजी
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