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श्री. ईश्वरलाल जैन
शिक्षा के साथ धार्मिक क्रिया काण्ड की ओर बहुत ही ध्यान रखा जाता है नित्यं प्रतिपूजन एवं सामायिक करना हर एक के लिये आवश्यक है, और पञ्चमी, अष्टमी, चतुर्दशी को प्रतिक्रमण भी कराया जाता है । विद्यार्थीयों को संगीत विद्या के अभ्यास के अतिरिक्त लेखनकला और वक्तृत्वकला भी सिखाई जाती है, और उस सभा का सञ्चालन विद्यार्थी स्वयं करते हैं, इस समय गुरुकुल का वार्षिक खर्च १५००० के लगभग है ।
श्री सोहनविजय ज्ञानमंदिर
इस नाम से गुरुकुल में एक पुस्तकालय है, जिसमें ६ हज़ार प्राकृत - - संस्कृत के शास्त्र एवं हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती, ऊर्दू आदि भाषाओं की पुस्तकों का विशाल संग्रह है और वाचनालय में ३० के लगभग दैनिक, साप्ताहिक, मासिक, पत्र ऊर्दू, हिंदी, अंग्रेजी के आते हैं, जिनका विद्यार्थी पूरा पूरा लाभ लेते हैं । यह ज्ञानमन्दिर भी गुरुदेव की स्मारक संस्था समझनी चाहिये । स्वर्गीय श्री सोहनविजयजी महाराज श्री विजयवल्लभसूरिजी महाराज के शिष्यरत्न थे, जिन्हों ने गुरुदेव के नाम पर संस्थायें कायम करने का अपना लक्ष बना लिया था, जिनकी कृपा से श्री आत्मानन्द जैन महासभा पंजाब का सञ्चालन हो रहा है ।
गुरुकुल शिक्षण पद्धति का महत्त्व -
गुरुकुल के इतिहास व परिचय के साथ संक्षिप्त में यह बताना अनुचित न होगा, कि अन्य अनेक संस्था में होने पर भी इस संस्था को जन्म क्यों दिया गया । पाठकों को यह प्रतीत होना चाहिये, कि गुरुकुल का शिक्षण सर्वथा स्वतन्त्र है । इस समय समाज, धर्म और देश के लिये कैसी शिक्षा की आवश्यकता है, जो मनुष्य की आध्यात्मिक, मानसिक, और वाचिक शक्ति को विकसित करे और कार्यक्षेत्र में उतरने पर अपनी उदरपूर्ति के साथ समाज, धर्म और देश की सेवा कर सके, इस प्रकार उच्चशिक्षा का आदर्श सामने रख कर गुरुकुल कार्य कर रहा है । शिक्षा का अर्थ विद्यार्थियों का केवल अक्षर ज्ञान करा देना नहीं, बल्कि उन्हे नवजीवन प्रदान करना है, समाजसेवा की भावना को भरना है और जीवन की ज्योति को देदीप्यमान करना है, समाज में नवजीवन संचार करने, प्रेरणाबल के प्रवाह से क्रान्ति पैदा करने आत्मज्ञान, आत्मसम्मान और समाज की समृद्धि के साथ बेकारी मिटाने के लिये उच्चशिक्षा ही एक उपाय है ।
शताब्दि ग्रंथ ]
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