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सूरीश्वरजी के पुनीत नामपर
वर्तमान ब्रिटिश साम्राज्य में स्कूल और बालकों ने अपना बाह्य सौन्दर्य दिखा कर जनता को अपनी और आकर्षित और मोहित कर रखा है, परन्तु जब से देश में बेकारी का जोर बढ़ा, बी. ए. और एम. ए. पास करने में अपार सम्पत्ति और समय नष्ट करने के बाद, जब ग्रेज्युएट नौकरियों के लिये भटकने लगे, और आत्महत्यायें करने लगे हैं, तब से यह मालूम होने लगा है कि यह शिक्षण पद्धति कितनी दोषयुक्त है, बहुत से विद्वानों ने स्पष्ट शब्दों में यह कह दिया है कि ब्रिटिश स्कूल और कॉलेजों की शिक्षा केवल मेकोले ( Macanloy ) की उद्देश्यपूर्ति है, जिसने सन् १८३६ में अपने पिता को पत्र में लिखा था - " कि इस ( हमारी ) शिक्षा का हिन्दुओं पर आश्चर्योत्पादक असर हुआ है और कोई भी हिन्दु जिसने इस (अंग्रेजी ) शिक्षा को ग्रहण किया है अपने धार्मिकतत्वों का श्रद्धालु तथा भक्त नहीं रहता, इस शिक्षा का ही प्रभाव है कि कुछ व्यक्ति केवल हिन्दू कहलाने के लिये अपने आप को धर्म का अनुयायी मानते हैं, कईयों इसाई धर्म को स्वीकार कर लिया है, मेरा विश्वास है कि हमारी शिक्षापद्धति को लोगों कुछ और अधिक अपनाया तो अब से करीब ३० वर्ष पश्चात् बङ्गाल के प्रतिष्ठित कुटुम्बों में भी कोई व्यक्ति मूर्तिपूजक न रहेगा। अन्त में उसने अपने यह उद्गार लिखे-
We must do our best to form a class who may be interpretors between us & the millions whom we govern, a class of persons Indian in blood & colour, but English in taste, in opinions, words and intellect.
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“ अर्थात् हमें अपनी शक्ति की चरम सीमा तक एक ऐसा जनवर्ग तैयार करना चाहिये जो मात्र खून और रङ्ग से ही हिन्दू हो तथा अपनी रुचि, शब्द, और बुद्धि की अपेक्षा से सर्वथा अङ्गरेज़ हो ऐसे वर्ग को ही हम अपने तथा लाखों व्यक्तियों, जिन पर हम शासन करते हैं, के बीच में मध्यस्थ बनाकर अपना कार्य साध सकते हैं । "
वास्तव में अब वैसी ही दशा होती जा रही है । परन्तु गुरुकुल जैसी संस्थाओं में पढ़नेवाला व्यक्ति कभी उस दशा को प्राप्त नहीं हो सकता, गुरुकुल शिक्षण पद्धति वास्तव में प्राचीन संस्कृति पोषक, एवं धार्मिक विचारों को दृढ़ रखनेवाली ही प्रमाणित हुई है । और जो देश के लिये भी सर्वथा उपयोगी है, गुरुकुल की शिक्षण पद्धति की बहुत से विद्वानों ने मुक्तकण्ठ से प्रशंसा की है, जहां का जीवन, पवित्र, सादा, शान्तिमय और चारित्र की ओर विशेष ध्यान देनेवाला होता है, गुरुकुल के संचालकों का विचार गुरुदेव के नाम को अमर करने के लिये इसे और भी उच्चकोटि पर लेजा
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[ श्री आत्मारामजी
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