________________
होशियारपुरमें श्रीमद् विजयानंदसूरीश्वरजी (आत्मारामजी)
महाराज की शरीरप्रमाण भव्य मूर्ति. संवत् १९५३ वैशाख सुदि पूर्णिमा की का और बैठक का माप लिवा लिया। उसी माप सनखतरा (जिल्ला स्यालकोट ) में श्रीजिनमंदिर की मूर्ति बनवाने का कारीगर को उसी वक्त की प्रतिष्ठा थी. होशियारपुर के सुप्रसिद्ध श्रावक कहदिया गया। लाला गुज्जरमल्ल नाहर और लाला नत्थुमल्ल मूर्ति तैयार होकर आ गई, संवत् १९५७ के भक्त गद्दहिया, मिस्त्रिको
वैशाखमें आचार्य श्री साथमें लिए श्रीआचार्य
विजयवल्लभमरिजी (उस महाराजकी (श्रीआत्मारा
वख्तके मुनिराज श्री मजी महाराजकी) सेवामें
वल्लभविजयजी) महाराज उपस्थित होकर पूछने लगे
के हाथसे प्रतिष्ठा हुई. कि, गुरुदेव ! किसी
दर्शन करते हुए यही प्रतीत आचार्य भगवानकी मूर्ति,
होता है मानो साक्षात् उनकी मौजुदगीमें किसी
गुरुदेव बिराजे हैं। भक्त श्रावक ने बनवाई है?
श्री सिद्धगिरि, गिरश्रीआचार्य महाराज ने
नार, वला, जामनगर, कहा-हां. कलिकाल सर्वज्ञ
बडौदा, दरापुरा, करचश्रीहेमचन्द्रसूरि महाराज
लिया, सुरत, बालापुर, की मूर्ति, महाराजा कुमा- श्रीमद् विजयानंदसूरीश्वरजी महाराज की अहमदाबाद, पाटण, रपालने बनवाई है। मूर्ति, हुशियारपुर (पंजाब) पाली, अंबाला, गुजरां
लाला नत्थुमल्ल भक्त हँसकर बोले, गुरु वाला, पट्टी, लाहौर, आदि अनेक क्षेत्रों में महाराज ! आजके समयमें आप हमारे लिए गुरुमहाराजकी मूर्ति विद्यमान है, परंतु होशिश्रीहेमचंद्रसूरि और यह लाला गुज्जरमल्ल राजा यारपुर के श्रीजिनमंदिरके एक हिस्से में जो कुमारपाल आपकी मूर्ति बनवाना चाहते हैं। मूर्ति है वह कुछ और ही आनंद देती है। कारीगर को साथमें लाये हैं। इतना कहकर यह उसी मूर्तिकी प्रतिकृति है। मिस्त्रि को इशारा करके श्रीगुरुदेव के शरीर
__चरणविजय.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org