Book Title: Atmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Atmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
View full book text
________________
जैन समाज में शिक्षा और दीक्षा का स्थान
आज साधु समुदाय का एक बहुत बड़ा भाग अपना कर्त्तव्य मात्र चेले - मूंडन बन रखा है | चाहे वह उचित रीति से हो या अनुचित रीति से । किस धर्मप्रेमी का हृदय धार्मिक मामलों में राज्यसत्ता के हस्तक्षेप से दुःखी न होगा ? किन्तु इन महात्मालोगों का अपना यश स्थान स्थान पर दीक्षाविरोधी कानून पास करा कर अपने पर कोर्टो में मुकदमें चलवाने में ही दीखता है और उनकी धुन है मात्र - हाय शिष्य ! हाय शिष्य !
महानुभावों ! सारा जैन समाज ही इन महात्माओं का शिष्य है । सारे जैन समाज के उद्धार का भार इनके ही शिरों हैं, फिर उधर से मुँह मोड़ कर कुछ लोगों के उद्धार की ओर ध्यान देना उतना युक्तिसंगत नहीं है, फिर भी समाज की चिन्ता छोड़ दीक्षा प्रकरण को लेकर इस तरह एक समाज का अंग भंग करना तथा साथ ही ऐसे साधुओं की संख्या बढ़ाना जो स्वयं साधुता की ओर झुके नहीं हैं, जिन्हों ने साधुता के महत्त्व को नहीं समझा है, उन्हें मात्र कपड़े पहना कर संख्या बढ़ाने से समाज का या उन साधुबनने वालों का कोई विशेष लाभ नहीं हो सकता । ऐसी दशा में यदि विचारा जाय तो बात कुछ और ही प्रतीत होती हैं । आज सर्वश्रेष्ठ बनने की धुन लगी हुई हैं । सब अपने अपने हठ पर अड़े हुये हैं, कोई किसी की नहीं सुनता ऐसी दशा में समाज फूटवैमनस्य बढ़ रहे हैं । साधु समुदाय अपने वास्तविक कार्य को समाज में शान्ति और सुख उत्पन्न करने के कार्य को छोड़ कर वैर बढ़ाने का कारण हो रहा हैं ।
क्या थोड़े से ही अच्छे साधु, समाज का कम उपकार कर सकते हैं ? ऐसी दशा में तो यही कहना पड़ेगा कि साधु संख्या की दृष्टि से बढ़े इसके स्थान पर ज्ञान शान्ति आदि की दृष्टि से उनका बढ़ना स्वयं उनके तथा समाज दोनों के लिये श्रेयस्कर है । इधर संख्या की दृष्टि से वे हिसाब बढ़ते जाना कोई महत्त्व नहीं रखता ।
जाति के अज्ञान को देखते हुए तो साधु बनाने की अपेक्षा शिक्षाप्रचार का कार्य साधुओं के लिये अधिक श्रेयस्कर होगा । मेरी नम्र मति के अनुसार शिक्षा की जितनी अधिक आवश्यकता है उसकी अपेक्षा दीक्षा की अत्यंत गौण मात्रा में । क्या मैं विशाल साधु समुदाय से इस बात की प्रार्थना करूँ कि वह शिक्षा प्रचार में योग ध्यान दे कर समाज और धर्म की डूबती हुई नैया को पार लगायेगा ? अधिक नहीं तो कम से कम चलती हुई जातीय शिक्षणशालाओं का विरोध भी न करेंगे ।
***
• ७४ २०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
[ श्री आत्मारामजी
www.jainelibrary.org