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श्रीमद् विजयानंदसरि तथा महर्षि दयानंद सी ऐसी समानतायें दृष्टिगोचर होती हैं जो इन की सेवाओं और महत्त्व को प्रकाशित करने में ज्योतिस्तम्भ का कार्य देती हैं।
___ यदि हम विजयानन्दसूरि तथा स्वामी दयानन्दजी के चित्रों को ध्यान से देखें तो प्रतीत होगा कि उन दोनों में केवल पहनावे का अन्तर है । यदि दोनों महापुरुषों को समान वस्त्र पहना कर देखा जाय तो पहिचान करना अतीव कठिन है। दोनों का आकार व शरीरगठन कुछ ऐसे ढंग से बना है कि वे युगलिये सगे भाई मालूम होते हैं । दोनों के मुखारविन्द पर ब्रह्मचर्य का तेज देदीप्यमान है। वे जीवन पर्यन्त पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत के पालक रहे और उसे कभी मन, वचन अथवा काय से खण्डित नहीं होने दिया।
. श्री आत्मारामजी व स्वामी दयानन्दजी में केवल आकार की ही सदृशता नहीं। सांसारिक बन्धनों को भी दोनों ने बाल्यकाल में ही तोड़ कर 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की नीति को मान्य किया था । ज्ञानवारिधि को पी जाने की उन में उत्कट आकांक्षा थी। दयानन्द के प्रज्ञाचक्षु गुरु को कभी भी अपने सुयोग्य शिष्य को एक बार से अधिक पाठ बताने का अवसर नहीं मिला । आत्मारामजी ने भी दीक्षा के कुछ ही वर्षों बाद आगमों को कण्ठस्थ कर लिया था । शिक्षाप्राप्ति के लिये उन्हें इधरउधर घूमने में जितने कष्ट सहन करने पड़े, उन सब का उन्हों ने मरदानावार मुकाबिला किया। उनकी स्मरणशक्ति इतनी तीव्र थी कि कभी २ उनके गुरु भी आश्चर्यान्वित हो जाते थे। अनुपम प्रतिभा के मालिक होते हुए भी उनमें गुरु के प्रति नम्रता तथा भक्ति के भाव विद्यमान थे । गुरु की आज्ञा पालना और उनकी सेवा में तत्पर रहना वे अपना परम धर्म समझते थे।
स्वामी दयानन्द का उद्देश्य हिन्दु समाज को अज्ञान के अन्धकार से ज्ञान के प्रकाश में लाना और उसे सच्चे धर्म से परिचित कर उसकी कूपमण्डुकता को दूर करना था। आचार्य आत्मारामजी का लक्ष्य जैन समाज में होनेवाली रूढ़ि-उपासना और सत्य से नावाकफियत की बेखकुनी करना था। दोनों धर्मवीरों के गुरुओं ने अध्ययन के अन्त में उन्हें जो उपदेश दिया, वह भी इनकी समानता का द्योतक है। स्वामी वीरजानन्द ने कहाः “ बेटा, आज हिन्दु जाति वेदों के वास्तविक ज्ञान से सर्वथा अनभिज्ञ है । मेरी यही गुरुदक्षिणा है कि तू संसार में वेदों के सत्य ज्ञान का प्रचार कर हिन्दु समाज की बुराइयों को दूर कर दे और अपना जीवन जाति की सेवा करने में अर्पित कर दे।” ____मुनि रत्नचन्दजी ने नवयुवक संयमी को उपदेश दियाः " आज साधु आगमों का
[ श्री आत्मारामजी
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