Book Title: Atmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Atmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
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पंन्यास श्री ललितविजयजी . भारत के शीर्षभाग में अवस्थित पृथ्वी के मेरुदण्ड स्वरूप हिमवान के क्रोड़ में स्थित इस भूमि का प्राचीन ग्रंथों में पांचाल नाम पाया जाता है। इसके एक ओर पृथ्वी का स्वर्ग "काश्मीर," जहां लोगों को अपनी शीतल मंद सुगंधीदायक वायु का सुरसदान कर रहा है, वहां दूसरी ओर भारत के दुर्ग की दीवार कांबोज प्रान्त स्थित है। पूर्व में संयुक्त प्रांत तथा दक्षिण में भारत की परम गौरवशालिनी राजस्थान भूमि है।
प्राचीन पांचाल देश का नाम बिगड़ते २ पंजाब हो गया। मुसलमान लोगों के आगमन तथा सिन्धु, चिनाब, रावी, झेलम, बयासा और शतलज इन पाँच नदियों से सिंचित होने के कारण भी इस का नाम पंजाब खूब प्रसिद्धि में आया। फारसी लोगों ने इस का नाम "पंज+आब" अर्थात् पाँच जल का देश रखा था। इस देश की उक्त पाँच विशाल नदियाँ हिमवान से असंख्य जलराशि लाकर इस देश में फैला देती हैं और फलस्वरूप सारा देश शस्य श्यामल है । प्राकृतिक शोभा में काश्मीर का बच्चा है। शिमला शैल इसी की गोद में अवस्थित है तथा पूर्वीय भाग पहाड़ों के आजाने से इतना सुरम्य है कि देखते ही बनता है । ..... आर्य लोगों का कहना है, तथा वेदों में भी लिखा है कि सब से प्रथम मनुष्य की सृष्टि इसी पांचाल देश के ब्रह्मवैवर्त नामक स्थान पर हुई थी और वहीं ब्रह्मा से उनके मानस ऋषि भी उत्पन्न हुये थे । पंजाब की सरस्वती नदी आज भी प्राचीन भारतीय सभ्यता की केन्द्र मानी जाती है। बहुत से विद्वानों के मतानुसार चारों वेदों के रचयिता ऋषि लोग पंजाब के ही निवासी थे। कुछ भी हो, इस प्रान्त का यह प्राचीनकालीन गौरव है।
- यह तो बहुत प्राचीन काल की बात हुई, हिन्दुओं के अठारह पुराणों के रचयिता व्यासजी इस प्रान्त के थे । उन्हों ने अपने संपूर्ण पुराणों की रचना शतद्रु (शतलज) के तट पर अवस्थित हरीका-पत्तन जो लाहौर और फीरोजपुर की सीमा पर स्थित है, में की थी । जहाँ पर आज भी सहस्रों दर्शनार्थी जाते रहते हैं। श्री भगवान् महावीर के समकालीन, उनके परमभक्त महाराज उदयन इसी प्रान्त के राजा थे, जिन्हों ने धर्मप्रभावना में महती रुचि दिखलाई थी और आखिर जैन दीक्षा अंगीकार कर साधुधर्म का पालन किया था ।
इस प्रान्त की प्रस्तुत राजधानी लाहौर का प्रारंभिक नाम लवपुर बतलाया जाता है, जिसे कहते हैं कि महाराज रामचन्द्रजी के पुत्र लव ने बसाया था। ऐसे २ शताब्दि ग्रंथ ]
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