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कुछ इधर उधर की हमारे स्वर्गस्थ न्यायाम्भोनिधि जैनाचार्यश्री १००८ श्री विजयानंदसूरीश्वरजी (आत्मारामजी) महाराज साहब को उक्त पुण्य प्रसविनी भूमि ने ही अपनी गोद से उत्पन्न किया था। आप की मातृभूमि होने का सौभाग्य इसी पंजाब भूमि को प्राप्त था । और पांचाल भूमि ने उन्नीसवीं शताद्वि में भी एक बार अपनी प्राचीन ऋषि-मुनि एवं महात्माओं की एक सुन्दर झलक दिखा दी थी। पंजाब भूमि उक्त महाराजसाहब को पाकर कृतार्थ हुई और इस युग में अपने प्रकाश को संसार में चमका कर हमारे भावी जीवन का दीप-स्तम्भ दिखा कर हमारी शतशः नमस्कार भाजन हुई है । - आप के परम श्रद्धेय गुरुदेव श्री १०८ बुद्धिविजयजी महाराजसाहब ( प्रसिद्धनाम घडेरायजी महाराज), ज्येष्ठ गुरुभ्राता श्री १०८ श्री मुक्तिविजयजी महाराज साहब (श्री मूलचंद्रजी महाराज सा०), श्री १०८ वृद्धिविजयजी महाराज साहब ( श्री वृद्धिचंद्रजी महाराज सा०) भी इसी प्रान्त में अद्भुत नररत्नों में थे। आप लोगों के द्वारा जाति तथा धर्म का कितना अपरिमित उपकार हुआ है, उसका वर्णन करना अस्थान समझ कर मूल विषय पर आना ही उचित है ।
श्री आत्मारामजी महाराज साहब की जन्म शताद्वि मनाने का आगामी चैत्र शु० १ को आयोजन हो रहा है। शताद्रि का अर्थ शत+अद्धि अर्थात् सौ वर्षवाली है। किसी भी महापुरुष के जीवन की कोई भी घटना जैसे जन्म, निर्वाण के सौ वर्ष बाद जो संस्मरण मनाया जाता है उसे शताद्रि और पचास वर्ष बाद के स्मरणोत्सव को अर्द्ध शताद्रि कहते हैं ।
भारतीयता का यह विशेष गुण है कि वह अपने महापुरुषों के संस्मरण बड़ी चतुरता से रखती है । यहाँ तक कि यह क्रिया एक प्रकार से धार्मिक विधान सी बन गई है । भगवान् श्री महावीर की जयन्ती चैत्र शुक्ल १३ को, श्री कृष्ण की जयन्ती भाद्र कृष्णा ८ मी को, श्री राम की जयन्ती नवमी, दशहरा आदि को, भगवान् बुद्ध की जयन्ती ज्येष्ठ कृष्ण १३ को, प्रतिवर्ष सार्वत्रिक रूप से मनाई जाती है । धार्मिक रूप से इन सब त्यौहारों का विधान किया गया है और जाति बड़े उत्साह से उक्त तिथियों को उत्सव करती है। यदि स्पष्टरूप से पूछा जाय तो ये मारी बातें उक्त महापुरुषों के संस्मरण के लिए ही हैं ।
शताब्दि मनाने का प्राचीन इतिहास यद्यपि अज्ञात है, फिर भी यह मानना ही पड़ेगा कि ये शताब्दिया भी वार्षिक जयन्ती का ही विशेष रूप हैं। वार्षिक रूप से
[ श्री आत्मारामजी
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