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पंन्यास श्री ललितविजयजी
तथा पश्चिमी सीमा प्रान्त, इस जाति की वीरता के फलस्वरूप सिक्ख राज्य में आ गये थे । आज भी सिक्खों की वीरता की धाक वहाँ वालों पर जमी हुई है।
सूबेदार हरिसिंह ललवानीद्वारा केवल ५००० सिपाहियों के द्वारा अफगानिस्तान के शाह की सवा लाख सेना का हराया जाना भारतीय इतिहास की अमर घटना है । आज भी सूबेदार हरिसिंह के नाम की इतनी धाक है कि कावुली औरतें अपने बच्चे को "चुप रह हरि आया" कह कर डराया करती हैं।
वर्तमान समय के ही यूरोपीय महायुद्ध को लीजिए । पंजाबी सेनाओं की शक्ति, सिक्खों की बहादुरी, उनका आत्मत्याग देखकर संपूर्ण अंग्रेज जाति चकित रह गई थी । वहाँ पंजाबियों की “वाह गुरु दाखालसा, वाह गुरु दी फतह" को सुनते ही दुश्मनों के होश हवाश फाख्ता हो जाते थे। इसप्रकार यह भूमि प्राचीनकाल से आजतक लाखों वीरों, महात्माओं, त्यागियों तथा सद्गृहस्थों की माता होने का सौभाग्य प्राप्त कर चुकी है। इसकी गोद में खेले हुए बालक भारत के सितारे तथा देश की शान रहे हैं और हैं।
ये तो शूरवीरता की बातें हुई, इस काल की वीरता के संस्थापक महात्माओं की, शहीदों की कहानियाँ भी भारत जाति का मस्तक गौरव से उच्च करने को प्रस्तुत है।
गुरु नानक और उनके पुत्र श्री चंद्रजी की योग तथा उपदेश की बातें जगद्विख्यात हैं । जिन्हों ने पेशावर, काश्मीर तथा पंजाब में हिन्दु धर्म का उद्धार किया था। गुरु गोविंदसिंह और गुरु तेगबहादुर जैसे योगीवीरों को भी इस भूमि ने ही उत्पन्न किया है।
गुरु गोविंदसिंह के पुत्रों का सा धर्मप्रेम, हकीकतराय आदि सैंकड़ों बच्चों की बहादुरी एवं साहस देख २ दाँतों तले उंगली दबानी पड़ती है । जिस के बच्चों तकने धर्म के लिए हँसते २ प्राण दे दिया था । भला उस भूमि को अपना कहते हुए किसे गौरव का अनुभव न होगा ? गुरु अमरदास जो अपने गुरुजी को स्नान कराने के लिए तीन कोस से उँधे पात्र जल लाया करते थे इसी प्रांत के थे । वर्तमानकालीन परम साधक स्वामी रामतीर्थजी जिन के योग तथा भक्ति आदर्श माने जाते हैं, इसी पंजाब प्रान्त में उन्नीसवीं शताद्धि में ही एक गांव मरालीवाला (गुजरावाला) में उत्पन्न हुए थे। मतादि ग्रंथ
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