Book Title: Atmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Atmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
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पंन्यास श्री ललित विजयजी
जितना महापुरुषों के सम्बन्ध में विवेचन नहीं हो सकता, उतने अधिक मनुष्य मिलकर महापुरुषों के सम्बन्ध में अपना विचार-विनिमय नहीं कर सकते, उतनी नवीन बातों की शोध नहीं हो सकती; जितनी प्रधान अवसरो पर । शताद्वि क्या ? अर्द्ध शताद्वि क्या? ऐसे उत्सवों के लिए जितना अधिक बार अवसर मिले उत्तम है । यों तो अच्छा हो दशाद्वि तक मनाई जाय । किन्तु यह कार्य व्यय-साध्य होने के कारण उतना सफल नहीं हो सकता जितना अधिक २ दिनों पर किया गया उत्सव; इस लिए ऐसे अवसरों अर्थात् शताद्धि और अर्द्ध शताद्धि को विशेष महत्व दिया जाता है ।
इस प्रकार के उत्सवों का इतिहास भी बहुत प्राचीन है । यह बात अवश्य थी कि उनमें ठीक सौ वर्ष का विधान ऐसा पक्का नहीं था । प्रत्येक बौद्ध साहित्य और इतिहास के अध्ययन करनेवाले को यह बात मालूम होगी कि अशोक, कनिष्क, हर्ष आदि राजाओं ने महात्मा बुद्ध की मृत्यु के बाद निश्चित समयों पर महात्मा बुद्ध की जयन्ती मनाई थी और उन्हीं अवसरों पर बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों का संकलन किया गया था ।
बौद्ध लोग तो यहाँ तक बढ़े हुए हैं कि वे अब तक महात्मा बुद्ध की शताब्दियाँ मनाते हैं । कुछ ही दिन पूर्व टोकियो में महात्मा बुद्ध की चौबीसवीं शताद्वि मनाई गई थी, जिसमें संसारभर के बौद्ध एकत्रित हुए थे। को. वा. दाइसी नामक जापान के एक बड़े महात्मा की ग्यारहवी शताद्वि गत वर्ष मनाई है । इस प्रकार ऐतिहासिक दृष्टि से इस प्रकार के महापुरुषों के जीवन सम्बन्ध रखनेवाले उत्सव, शताब्दि उत्सव बहुत प्राचीन हैं। साथ ही विशुद्ध भारतीय उपज हैं ।
बीच के समय में इनका काम कुछ ढीला पड़ गया था, अब फिर जागृति के साथ २ यह उत्सव भी जग गया है। श्री दयानन्द सरस्वती की जन्म शताब्दि मथुरा में तथा निर्वाण अर्द्ध शताब्दि अजमेर में हुई है; यह तो कल की बात है । भारतेन्दु अर्द्ध शताब्दि, टाल्स्टाय शताब्दि, चर्च ऑफ इंग्लैण्ड की शताब्दि, बंकिमचन्द्र की शताब्दि, इस तरह रोज़ इनका क्रम चल रहा है । इनका उद्देश्य महापुरुषों की याद, उनकी शिक्षाओं का जीवित बनाये रखना है ।
इसी ही उद्देश्य को लेकर यह शताब्दि मनाई जा रही है और उक्त महात्मा के थोड़े से जीवन के संस्मरण आप के सम्मुख रखने का प्रयत्न हो रहा है।
शताब्दि ग्रंथ ]
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