Book Title: Atmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Atmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
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श्री. बनारसीदास जैन
लिपि का काम बीस बरस तक चलता रहा । यह काम महाराजजी के उपदेश से हुआ होगा । इस के अतिरिक्त पुस्तक भंडार को पूर्णरूप देने के लिये महाराजजी ने सैकड़ों प्राचीन तथा लिखित और नवीन मुद्रित प्रतियां गुजरात मारवाड़ से पंजाब में भिजवाई जो भिन्न २ नगर के भंडारों में सुरक्षित हैं । इन के साथ पंजाब के यतियों के भंडार भी मिल गये हैं। इसप्रकार महाराज साहिब ने पंजाब में पूर्ण पुस्तक संग्रह कर दिया था। सरस्वतीमन्दिर की प्रधान सामग्री पुस्तकसंग्रह के एकत्र हो चुकने पर अब महाराज साहिब क्या करते ? लेखक का अनुमान है कि वे स्वयं इस के कुलपति बनते और वीरचन्द राघवजी * जैसे अनुभवी तथा विद्वान् व्यक्तियों का सहयोग लेकर जैन साहित्य में अनुसंधान युग की नींव डालते । प्राचीन तक्षशिला की भांति पंजाब में गुजरांवाला भी विश्वविख्यात जैन विद्याकेन्द्र होता । महाराज साहिब के संसर्ग में रह कर साधु तथा श्रावकों का एक ऐसा पठित और चारित्रवान् समूह निकलता जो जैनधर्म की महत्ता को संसार के कोने २ में फैला देता ।
शताब्दि के इस अवसर पर महाराज साहिब के भक्त मुनिराज तथा श्रावकों का प्रथम कर्तव्य है कि वे महाराजजी की अबतक अपूर्ण रही हुई इस भावना को कार्यरूप में परिणत करके असीम पुण्य के भागी बनें ।
* भाई वीरचन्द राघवजी के संसर्ग से अमेरिका तथा योरप में कई सजनों को जैन धर्म की प्राप्ति हुई । लंडननिवासी मि० हर्बर्ट वारन ने तो उनके उपद से मांस-मदिरा का त्याग कर दिया था।
शताब्दि ग्रंथ ]
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