Book Title: Atmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Atmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
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श्रीमद् विजयानंदसूरि तथा महर्षि दयानंद था जब कि लोग हिम्मत हार चुके थे। अपने साथी साधुओं के साथ वे इस तरह चलते थे मानो कोई रिसाला बन्दूकें लिये चला जा रहा हो ।
जो कोइ व्यक्ति समाज का उद्धार करना चाहता है, उसकी जहालत का पर्दा दूर करने की कोशिश करता है, परम्परा की रूढ़ि को माननेवाले लोग उसका विरोध किया ही करते हैं । स्वामी दयानन्द पर पत्थर पड़े, उन्हें गालियां दी गई और अन्त में विष तक देने में भी लोगों ने कसर न रक्खी । मुनि आत्मारामजी को भी यतियों ने गालियां दीं, उन्हें मिथ्यादृष्टि बताया, उनके विषय में झूठी अफवाहें उड़ाईं, आहार आदि के कष्ट दिये गये । किन्तु सत्य का झण्डा हाथ में लेनेवालों के लिये ऐसा विरोध और कष्ट दुःखद नहीं वरन् कल्याणप्रद होता है । जो दशा चान्द पर थूकनेवाले की होती है, वही दशा इन धर्मप्रचारकों का विरोध करनेवालों की हुई। सोना तपाये जाने पर अधिक चमकता है। विघ्नों का मुकाबिला करने से ये महापुरुष अधिक दृढ़ हुए और ऐसी क्रांति की आग भड़काने में समर्थ हुए जो अब आसानी से नहीं बुझाई जा सकती। .. जिस प्रकार भगवान् महावीर तथा महात्मा बुद्ध की सफलता का एक रहस्य जनसाधारण को प्रचलित भाषा में उपदेश देना था उसीप्रकार २० वीं शताब्दि के ये दो रत्न भी हिन्दी भाषा को अपना कर सफल हुए। यद्यपि वे संस्कृत के दिग्गज तथा अद्वितीय विद्वान् थे तथापि उन्हों ने अपने विचार उस समय की प्रचलित हिन्दी भाषा में ही लिखे ताकि उनकी आवाज़ प्रत्येक व्यक्ति सुनने में समर्थ हो सके। स्वामी दयानन्दरचित 'सत्यार्थप्रकाश' तथा आचार्य विजयानन्दसूरिप्रणीत 'जैनतत्त्वादर्श, अज्ञानतिमिरभास्कर' व ' तत्त्वनिर्णयप्रासाद' बड़े प्रसिद्ध हैं ।
आर्यसमाज तथा जैनसमाज के लिये एक बात बड़े दुर्भाग्य की है कि उनके उपकारी महात्माओं में मुलाकात न हो सकी । जोधपुर में भेण्ट होने का निश्चय हुआ था। दयानन्दजी जोधपुर से कुछ दिन के लिये बाहर गये । परन्तु जिस रोज़ जैन धर्म का 'उद्धारक महात्मा जोधपुर पहुंचा उसी दिन यह दुःखद समाचार मिला कि हिन्दुधर्म के शोधक महात्मा की अकाल मृत्यु हो गई। यदि वे दोनों परस्पर भेण्ट कर पाते तो नहीं कहा जा सकता कि आज भारत के धार्मिक इतिहास में किस प्रकार की क्रान्ति ने जन्म लिया होता ।
ऊपर लिखी हुई समानताओं के अतिरिक्त एक बात यह भी उल्लेखनीय है कि इन
[श्री आत्मारामजी
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