Book Title: Atmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Atmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
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श्रीमद्विजयानंतर
[ लेखक-यति श्री बालचन्द्राचार्यजी महाराज-खामगांव ]
स्वनामधन्य, युगप्रधान आचार्य श्रीमद्विजयानन्दसूरिजी (उर्फे आत्मारामजी) महाराज का पुनीत नाम जैन संसार में भलीभांती परिचित है। आप ने अपने जीवनकाल में ऐसे २ महत् कार्य किए हैं कि जिसके लिए जैन जगत् आप का सदा ऋणी रहेगा । वर्तमान युग की आदि में आप एक क्रांतिकारी महापुरुष हो चुके है । आप के लिखे हुवे महत्काय ग्रंथ और विशाल व विद्वान् शिष्य समुदाय इस बात के लिए साक्षीभूत विद्यमान है । एवं आप की जीवनघटनाएँ अनेक सुयोग्य लेखकोंद्वारा लिखी जाकर प्रकट हो चुकी हैं। फिर मेरे सरीखा क्षुद्र लेखक क्या विशेष लिख सकता है ? परंतु शताब्दि के उपलक्ष्य में जो विशेषांक प्रकाशित होनेवाला है उसके लिए एक लेख भेजदेने की, आचार्यसम्राट् श्रीमद्विजयवल्लभसूरीश्वरजी ने मेरे को आज्ञा की एवं शताब्दि अंक के सम्पादक सुहृदवर श्रीयुत मोहनलाल दलीचंद देशाई बी. ए., एलएल्. बी. एडवॉकेट, बंबई हाईकोर्ट ने भी भार देकर कहा । उक्त दोनों सज्जनों की प्रेरणा से यह लेख लिखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ... लेख लिखने बेठा तब मैं इस विचार में पड़ गया कि मैं क्या लिखू ? क्यों कि न तो मैं आप के साथ में रहा हूँ सिर्फ दर्शनमात्र मेरे को हुआ है और अन्य लेखकों का चर्वित चर्वणकर के कुछ लिखना मुझे पसंद नहीं । तब लिखना तो भी क्या ? इतने में एक बात का स्मरण हो आया कि आत्मारामजी महाराज बड़े मंत्रवादी थे, इस विषय पर किसी भी
शताब्दि ग्रंथ
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