Book Title: Atmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Atmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
View full book text
________________
सुन्दरलाल जैन
गुरुदेव की परिषद् में भाग लेने की प्रबल इच्छा तो थी ही कारण वह समझते थे कि परिषद् जैनधर्म का संसार में उद्योत करने का बड़ा भारी साधन है और उस अवस्था में विशेष कर जब कि
संसार के समस्त धर्म
के नेता उसमें सम्मिलित
हो रहे थे । उपर्युक्त पत्र के आने पर गुरुदेव ने पक्का निश्चय कर लिया कि
वहां पर अपना प्रतिनिधि
भेजा जावे । प्रतिनिधि चुनना कोई आसान काम नहीं था, क्यों कि उस समय जैन समाज में विद्वान गृहस्थ नहीं के बराबर थे जो डंके की चोट से संसार में जैन धर्म का सच्चा स्वरूप बतावे । आप की दृष्टि श्रीयुत वीरचंद राघवजी गांधी बैरिष्टर पर गई । कतिपय जैनों ने जो कि रुढ़ पूजक थे श्री वीरचंद राघवजी गांधी की समुद्रयात्रा में बाधा उप
G
Jain Education International
जैन पूजाविधिदर्शक चित्र
स्थित की, परन्तु श्री गुरुदेव ने उन्हें प्रबल युक्तियों से बताया कि जैन धर्म इस विषय में कितना उदार है । अन्ततः उन्हें गुरुदेव की आज्ञा के आगे शिर झुकाना पड़ा। गुरुदेव ने श्री वीरचंद गांधी को अपने पास रखकर जैन धर्म के
शताब्दि ग्रंथ ]
6)
For Private & Personal Use Only
.: ३९ :
www.jainelibrary.org