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मुनिश्री आत्मारामजी तथा चिकागो सर्वधर्म परिषद्
कि मैं वस्तुतः उनकी ओर से तथा समूची जैन समाज की ओर से सर्व धर्म परिषद् बुलाने के उच्च आदर्श तथा उस में सफलता प्राप्त करने पर आप को धन्यवाद दूं ।"
गुरुदेव के प्रतिनिधि ने परिषद् में किस योग्यता से अपना पक्ष प्रगट किया और उसका जनता पर कितना प्रभाव हुआ यह उस समय के एक अमरीकन पत्र के शब्दों से पता चलता है:--
__“A number of dist inguished Hindu scholars, philosophers and religious teachers attended and addressed the Parliament, some of them taking rank with the highest of any race for learning, eloquence and piety. But it is safe to say that no one of the oriental scholars was listened to with greater interest than the young layman of the Jain community as he declared the ethics and philosophy of his people. "
श्री. वीरचंद राघवजी गांधी अर्थात् “अनेकों जगद्विख्यात् हिन्दु विद्वान, दार्शनिक पंडित और धार्मिक नेता परिषद् में सम्मिलित हुए और उन्हों ने व्याख्यान दिये । उन में कुछएक की गिनती तो विद्वत्ता, दया तथा चारित्र में किसी भी जाति के बड़े से बड़े विद्वानों में होती है । यह कहना कोई अत्युक्ति नहीं कि पूर्वीय विद्वानों में जिस रोचकता के साथ जैन नवयुवक शताब्दि ग्रंथ ]
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