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: ॥९००८ ॥ श्री विजयानंदसूरीश्वरजी अपरनाम महाराज
श्री आत्मारामजीनी जन्म शताब्दि समयनी स्तुति . संवत् १९९२ ना कारतक सुदि ११ ने वार बुध ।
लेखक-प्रवर्तक श्री कांतिविजयजी दुहो-परम मंत्र गुरु नाम हे साचो आतमराम ॥
तीन लोक की संपदा रहने को विश्राम ॥१॥ राग-आसावरी, ताल-त्रितालः विजयानंदसूरि सज्झाय आज आनंद मोरे अंगणमें, श्री वीरजिनेश्वर संघन में । आतमराम आनंदसुखधामा, दास गणेश कुलमंडन में ॥१॥ रूपादे माता सुखसाता, पुत्र दीयो जनरंजन में । पुत्र पढ़ायो सुगुण बनाव्यो, जेसे सुगंधी चंदन में ॥२॥ रूप मनोहर सुरवर जायो, कलाकलानिधि रंजन में । वीरजिनंद की वाणी मानी, गुरुगम अखीयां अंजन में ॥३॥ संजमराज कीयो शिर भूषण, मोहराज दल खंडन में । कृपा भई सब सद्गुरु जनकी, धर्म उपदेश दे छंदनमें' ॥४॥ सुमतिसती निशदिन रहे मन में, न रहे कुमत कृत बंधन में। वचनामृत वरसे जलधारा, शासन सुरतरु सिंचन में। ॥५॥ विषयविरागी परिग्रह त्यागी, धूल पडी कहे कंचन में। नमन करत हे नरपति यतिपति, जनम सफल लहे बंदन में ॥ ६ ॥ विजयानंदसूरि महाराजा, जय जय रहो सदानंदन में। कांतिविजय गुरु चरणकमल में, वंदन होवे अनंतन में ॥७॥ १-उपदेश देती वखते सारा छंदोमां कहे । २ वंदना अनंत वार हो ॥ .
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