Book Title: Atmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Atmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
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मंत्रवादी श्रीमद् विजयानंदसूरि
लेखक ने कुछ भी नहीं लिखा अतएव इसी विषय पर मेरा अनुभव प्रकट कर देना योग्य समझ कर प्रस्तुत लेख लिखना प्रारंभ किया ।
स्वर्गीय आचार्य के विद्वान् शिष्य स्व. विद्यासागर, न्यायरत्न श्रीमद् शांतिविजयजी महाराज के साथ में कुछ वर्ष रहने का मेरे को प्रसंग मिला था। जैनशास्त्रों का अवलोकन मै ने आप के साथ में रहकर किया था । वे मेरे पर बड़ा प्रेम रखते थे। उनके पास धनलोलुप अनेक यति-श्रावक जाते रहते थे और वे इतने उदार थे कि सब को कुछ न कुछ देकर बिदा करते थे। द्रव्य रखने पर भी वे इतने विरक्त-त्यागी थे कि आया और खर्च किया । कभी किसी में उन्हों ने रकम जमा नहीं की और न व्याज उपजाया, परंतु मेरा और उनका निःस्वार्थ प्रेम था। मैं ने उनसे कभी कुछ भी नहीं मांगा और न कुछ लिया; बल्कि मैं ने मेरे आश्रम में महिनों तक रखकर उनकी सेवा की थी । हम जब २ साथ में रहते थे तब रात्री के समय पर किसी एक विषय पर ज्ञानचर्चा हमेशा ही किया करते थे। इस बात का मुझे स्मरण है कि शांतिविजयजी महाराज प्रसंगवश अनेकवार श्री आत्मारामजी के संबंध में अनेक घटनाओं के वृत्तांत मुझे कहकर सुनाते थे। एक वार हम दोनों आनन्द से बैठे हुए वार्तालाप कर रहे थे उस समय मैं ने प्रश्न किया कि--" आपने रोगापहारिणी, अपराजिता, श्री सम्पादिनी आदि जैन विद्याएँ किन से प्राप्त की ? " तब शांतिविजयजी ने कहा कि-" ये विद्याएँ मेरे परमोपकारी गुरु आत्मारामजी महाराज ने प्रसन्नतापूर्वक दी हैं।" मैं ने फिर प्रश्न किया कि-" आप के गुरुजी ने किस से प्राप्त कि थी ? ढूंढिया पंथ में थे तब या पश्चात् ? " उत्तर मिला कि---" मेड़ते में एक वयोवृद्ध यतिजी रहते थे । वे बड़े मंत्रबादी और सदाचारी थे। उनको कोई सुयोग्य शिष्य नहीं था इसलिये वे विद्याएँ उन्हों ने किसी को नहीं दी थीं और आत्मारामजी महाराज वहांपर गये तब उन वयोवृद्ध यतिजी ने आत्मारामजी से कहा कि--" तुम महापुरुष हो, तुम्हारे द्वारा जैन धर्म की महती प्रभावना होनेवाली है, यह योगबल से मुझे ज्ञात हुआ है इसलिए मैं तुम को सिद्धविद्याएँ देना चाहता हूँ जिनको साधन करने की भी आवश्यकता नहीं है। केवल पाठ करने से कार्य होजाता है । तब आत्मारामजी महाराज ने उत्तर दिया कि--" आप सदाचारी, ज्ञानी, वयोवृद्ध है। मुझे आप अधिकारी समझ के देना चाहते हैं तो मैं ले सकता हूं और उसका उपयोग समय पर धर्म के लिए करता रहूँगा।” पश्चात् यतिजी महाराज ने अनेक सिद्धविद्याएँ बतलाई जिनका उपयोग आप करते रहें । उन यतिजी का नाम भी मेरे से शांतिविजयजी ने कहा था परंतु मुझे स्मरण में नहीं रहा ।
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[श्री आत्मारामजी
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