Book Title: Atmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Atmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
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श्री लक्ष्मण रघुनाथ भीडे आचार्य महाराज के सभी ग्रन्थ आजकल के हिन्दी में मात्र पुनर्मुद्रित करने चाहिए, क्यों कि रूढ़ हिन्दी में वे लिखे जायें तो बहुत ही प्रभावक होंगे। आचार्य के नाम की धर्मशास्त्र पाठशालाएँ तथा ग्रन्थसङ्ग्रहालय जगह जगह स्थापित किये जायँ । एक आत्मानन्द मिशन भी खोला जाय कि जो जैनसङ्घटन और शुद्धि का कार्य देश-विदेशों में करे । आत्माराम अनाथालय भी होने चाहिएं । महाराज साहेब गरीब खत्री के यहाँ पैदा हुए । आप का प्रतिपाल एक श्रावक वणिक ने किया इसीलिये आप जैन साधू बने: नहीं तो जरूर आर्यसमाजी बनते अथवा गृहस्थी होते । इस से आत्माराम अनाथालय की आवश्यकता भलीभाँति प्रतीत होती है। जैनसमाज धनी है उसको अनाथालयों की जरूरत नहीं यह मात्र भ्रमणा है । उसको छोड़के अनाथालय के रूपमें ही आत्मानन्द महाराज का शताब्दि स्मारक किया जाना चाहिए । ऐसे अनाथालय छोटे बड़े सभी जाति के स्त्री-पुरुषों के वास्ते जगह जगह होने चाहिए । ये और दूसरे नये तरीके के प्रभावनाओं से ही हम आचार्यऋण अदा कर सकते हैं।
महाराज साहेब को स्वर्गवासी हुवे करीब २ चालीस बरस हुवे । इस काल में हमने क्या प्रगति की है ? आप के पट्टधर श्रीमद् विजयवल्लभसूरिजी महाराज ने आप का स्मरण ताजा रक्खा और आप के शुभ नाम से बहुत कुछ कार्य किये इसीलिये आज हम आप के शताब्दि का स्मरण कर रहे हैं । अब आप के शताब्दि के स्मारक की वजह से और आगे बढ़ना ही चाहिए। काल-परिस्थिति ध्यान में लेकर आप ने अपने जमाने में आगे बढ़कर धर्मप्रभावना की और अच्छा दाखला हमारे सामने रक्खा। अब हम को भी आप के रास्ते से ही चलना चाहिए । मैं यही आशा करता हूं कि शासनदेव हम सब को धर्मकार्य में कालोचित मागों में आगे बढ़ने की शक्ति दे और आचार्यऋण से हमारी मुक्ति होकर हम मोक्षमार्ग के लायक बने । तथास्तु । वर्धतां जिनशासनम् ।
शताब्दि ग्रंथ ]
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